Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 128
________________ प्रकीर्णकानि / / 10 श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] [ 117 श्राससिऊणं पंडं श्रायवतत्तं जलं पासी // 514 // खमगतणनिम्मंसो धवणिसिरोजाल-संतयसरीरो / विहरिय अप्पप्पाणो मुणिउवएसं विचितंतो // 515 // सो अनया णिदाहे पंकोसन्नो वणं निरुत्थारो। चिरवेरिएण दिवो कुक्कुडसप्पेण घोरेणं // 516 // जिणवयणमणुगुणितो ताहे सव्वं चउबिहारं / वोसिरिऊण गइंदो भावेण जिणे नमंसीय // 517 // तत्थ य वणयरसुरवर-विम्हियकीरंत-पूयसकारो / मज्झत्थो श्रासी किर कलहेसु य जजरिज्जतो // 518 // सम्मं सहिऊण तो कालगयो सत्तमंमि कप्पम्मि / सिरितिलयम्मि विमाणे उक्कोसठिई सुरो जायो // 511 // सुयदिठिवायकहियं एवं अखाणयं निसामित्ता / पंडियमरणम्मि मई दढं निवेसिज भावेणं // 520 // जिणवयणमणुस्सट्टा दोवि भुयंगा महाविसा घोरा / कासीय कोसियासथ तणूसु भत्तं मुइंगाणं // 521 // एगो विमाणवासी जायो वरविज-पंजर-सरीरो। बीयो उ नंदणकुले बलुत्ति जवखो महड्डियो // 522 // हिमचूलसुरुप्पत्ती भद्दगमहिसी य थूलभदो य / वेरोवसमे कहणा सुरभावे दंसणे खनणो॥५२३॥ बावीसमाणुपुधि तिरिक्खमणुयावि भेसणटाए। विसयाकंपरवखण करेज देवा उ उवसग्गं // 524 // संघयणधिईजुत्तो नवदसपुवी सुएण अंगा वा / इंगिणि पायोवगमं पडिवजइ एरिसो साहू // 525 // निचल निप्पडिकम्मो निविखवए जं जहिं जहा अंगं। एयं पायोवगर्म सनिहारि वा यनीहारिं / / 526 // पायोवगर्म भणियं समविसमे पायवुब्व जह पडिग्रो / नवरं परप्पयोगा कंपिज जहा फलतरुव्व // 527 // तसपाणबीयरहिए विच्छिराणवियारथंडिलविसुद्धे / एगते निदोसे उविति श्रभुजयं मरणं // 528 // पुव्वभवियवरेणं देवो साहरइ कोऽवि पायाले / मा सो चरिमप्सरीरो न वेणं किंचि पाविजा // 521 // उप्पन्ने उवसग्गे दिव्वे माणुस्सए तिरिवखे थ। सव्वे पराजिणित्ता पायोक्गया पविहरंति // 530 // जह. नाम असी कोसा अन्नो कोसो असीवि खलु अन्नो / इय

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