Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 116 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः खमन्निश्रो सिद्धो // 417 // महुरा जियसत्तुसुत्रो अणगारो कालवेसियो रागे। मोग्गलसेलसिहरे खइयो किल सरसियालेणं // 418 // सावस्थी जियसत्तूतणयो निक्खमण पडिम तणफासे / बीरिय पविय विकंत्रण कुसले. सणकढणासहणं // 411 // चंपासु णंदगं चिय साहुदुगुलाइ जल्लखउरंगे। कोसंबि जम्मनिक्खमण वेयणं साहुपडिमाए // 500 // महुराइ इंददत्तोऽ. सक्कारा पायछेयणे सढो / पन्नाइ अजकालग सागरखमणो य दिट्टते // 501 // नाणे असगडतायो खंभगनिधी यणहियासणे भद्दो / दसणपरीसहम्मि उ आसाढभूई उ पायरिया // 502 // चरियार मरणग्मि उ समुइराणपरीसहो मुणी एवं / भाविज निउणजिणमय-उवएससुईइ अप्पाणं // 503 // उम्मग्गसंपयायं मणहत्थिं विसयसुमरियमणंतं। नाणंकुसेण धीरो धरेइ दित्तंपिव गइंदं // 504 // एए उ अहासूरा महिड्डिए को व भाणिउं सत्तो ? / किं वातिमूबमाए जिणगणधर-थेरचरिएसु // 585 // किं चित्तं जइ नाणी सम्मदिट्टी करंति उच्छाहं / तिरिएहिवि दुरणुचरो केहिवि अणु पालियो धम्मो // 506 // अरुणसिहं दवणं मच्छो सरणी महासमुद्दम्मि। हा ण गहिउत्ति काले झस(ड)त्ति संवेगमावराणो // 507 // अप्पाणं निदंतो उत्तरिऊणं महन्नवजलायो / सावजजोगविरयो भत्तपरिराणं करेसीय // 508 // खगडभिन्नदेहो दूसह-सूरग्गिताविय-सरीरो। कालं काऊण सुरो उववन्नो एव सहणिज्जं // 501 // सो वानरजूहबई कंतारे सुविहियाणुकंपाए / भासुरवर-बुदिधरो देवो वेमाणियो जायो // 510 तं सीहसेण-गयवरचरियं सोऊण दुक्करं रराणे / को हु णु तवे पमायं करेज जागो मणुस्सेसु ? // 511 // भुयग-पुरोहियडको राया मरिऊण सल्लइवणम्मि / सुपसत्थ-गंधहत्थी बहुभयगय-भेलणो जायो // 512 // सो सीहचंदमुणिवर-पडिमापडिबोहियो सुसंवेगो। पाणवहालियचोरिय-श्रवं. भपरिग्गह-नियत्तो / / 513 // रागद्दोसनियत्तो छट्टखमणस पारणे ताहे।
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