Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 125
________________ 11. ] [श्रीमदागमसुभासिन्धुः / अष्टमी निमागा धिइसंपन्ना अरणेवि दुहाओं मुच्चंति // 464 // दंडोवि य अणगारो थायावणभूमितंठियो वीरो / सहिऊण वाणघायं सम्मं परिनिव्वुयो भगवं // 465 // सेलम्मि चित्तकूडे सुकोसलो सुट्टियो उ पडिमाए।नियजणणीए खइनो वग्धीभावं उवगयाए // 466 // पडि(णिय)मायगयो अ मुणी लंबेसु ठिो बहुसु ठाणेसु। तहवि य अकलुसभावो सा हु खमा सब्बसाहूणं // 467 // पंचसयापरिखुडया वइरिसी पवए रहावत्ते / मुत्तूणखुड्डगं किर अन्नं गिरि. मस्सियो सुजसो॥४६॥ तत्थ य सो उवलतले एगागी धीरनिच्छयमईश्रो। वोसिरिऊण सरीरं उराहम्मि ठियो वियप्पा(विगयण)णो // 46 // ता सो अइसुकुमालो दिणयरकिरणग्गि-तावियसरीरो / हविपिंडुब्ब विलीण उववराणो देवलोयम्मि // 470 // तस्स य सरीरपूयं कासीय रहेहि लोगपाला उ। तेण रहावत्तगिरी अजवि सो विस्सुत्रो लोए // 471 // भगवंपि वइरसामी विइयगिरि-देवयाइ कन्नपूयो / संपूइयोऽत्थ मरणे कुंजरभरिएण सक्केणं // 472 // पूइयसुविहियदेहो पयाहिणं कुंजरेण तं सेलं / कासीय सुरवरिंदो तम्हा सो कुजरावत्तो // 473 // तत्तो य जोगसंगह-उवहाणवखाणयम्मि कोसंबी। रोहगमवंतिसेणो रुज्झेइ मणिप्पभो भासो(ब्भास) // 474 // धम्मगसुसीलजुयलं धम्मजसे तत्थ रराणदेसम्मि / भत्तं पञ्चक्खा ASS TORREARS इय सेलम्मि उ वच्छगातीरे // 475 // निम्ममनिरहंकारो एगागी सेलकंदरसिलाए / कासीय उत्तम8 सो भावो सबसाहूणं // 476 // उराहम्मि सिलावट्ट जह तं अरहराणएण सुकुमालं / विग्यारियं सरीरं अणुचिंतिजा तमुच्छाहं // 477 // गुब्बर पायोवगयो सुबुद्धिणा णिग्घिणेण चाणको / दवो न य संचलियो सा हु धिई चिंतणिज्जा उ॥ 478 // जह सोवि सप्पएसी वोसट्टनिसिठ्ठ-चत्तदेहो उ / वंसीपत्तेहिं विनिग्गएहिं श्रागासमुक्खित्तो // 476 // जह सा बत्तीसघडा वोसट्ठनिसट्ट-चत्तदेहागा / धीरा- वारण उ दीवएण विगलिम्मि श्रोलझ्या // 480 // जंतेण करकएण व सत्थेहिं व

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