Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 124
________________ प्रकीर्णकानि.१० श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] [ 113 अटिनिवेसं पंकिब्ध सनामगा हत्थी / / 447 // जह ते समसचम्मे दुबलवि. लग्गेवि णो सयं चलिया। तह अहियासेयव्वं गमणे थेवंपिमं दुक्ख // 448 // अयलग्गाम कुडुबिय सुरइयसय-देवसमणयसुभदा / सव्वे उ गया खमगं गिरिगुह-निलयन्नियच्छीय // 441 // ते तं तवोकिलंतं वीसामेऊण विणयपुवागं / उवलद्धपुराणपावा फासुयसुमहं करेसीह // 450 // सुगहियसावयधामा जिगमहिमाणेसु जणियसोहग्गा / जप्तहरमुणिणो पासे निखंता तिव्वसंवेगा॥ 451 // सुगिहिय-जिणवयणामय-परिपुट्ठा सीलसुरहिगंधवा / विहरिय गुरुस्तगासे जिणवरवसुपुज्जतित्थंमि // 452 // कणगावलिमुत्तावलिरयणावलि सीहकीलियकलंता / काही य ससंवेगा आयंबिलवड्डमाणं च // 453 // श्रोसरिया य मणोहर-सिहरंतर-संचरंतपुश्खरयं / बाइकरचलणपंक्य-मिर-सेवियमाल हिमवंतं ॥४५४ारमणिजहरय-तरुवर-परहुअ-सिहिभमरमहुयरिविलोले / अमरगिरिविसय-मणहर जिणवयण-सुकाणणुद्दसे // 15 // तंमि सिलायल पुहवी पंचवि देहट्टिईसु मुणियत्था / कालगया उववरणा पंचवि अपराजियविमाणे // 456 // तायो चइऊण इहं भारहवासे असेसरिउदमणा / पंडुनराहिवतणया जाया जयलच्छिभत्तारा // 457 // ते कराहमरण-दूसह-दुक्खसमुप्पन्न-तिब्वसंवेगा / सुट्टियथेरसगासे निक्खता खायकित्तीया // 458 / / जिट्ठो चउदसपुवी चउरो इक्कारसंगवी श्रासी / विहरिय गुरुस्तगासे जसपडहभरंत-जियलोया // 451 // ते विहरिऊण विहिणा नवरि सुरटुं कमेण संपत्ता / सोउं जिणनिव्वाणं भत्तपरिन्नं करेसीय // 460 // घोराभिग्गहधारी भीमो कुतग्गगहिय-भिक्खायो / सत्तुजयसेल. सिहरे पायोवगयो गयभवोघो / / 461 // पुव्वविराहिय-वंतर-उवसग्गस ह. स्समारुयनगिंदो / अविकंपो ासि मुणी भाईणं इकपासम्मि // 462 // दो मासे संपुराणे सम्म धिइधणिय-बद्धकच्छायो। ताव उवसग्गियो सो जाव उ परिनि. व्वुयो भगवं // 463 // सेसावि पंडुपुत्ता पायोवगया उ निव्व्या सव्वे / एवं

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