Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 123
________________ 112] श्रीमशमसुधासिन्धुः अष्टमों विमागः गलियाहिं चालिणिव को। न य धम्मायो चलियो तं दुक्करकारयं वर्दै // 430 // गयसुकुमालमहेसी जह दवो पिइवणंसि ससुरेणं / न य धम्माश्रो चलियो तं दुक्करकारयं वंदे // 431 // जह तेण सो हुयासो सम्मं अइरेगदूसहो सहियो / तह सहियो सुविहिय ! उवसग्गो देहदुक्खं च // 432 // कमलामेलाहरणे सागरचंदो सुईहिं नभसेणं / प्रागंतूण सुरत्ता संपइ संपाइणो वारे // 433 // जा तस्स खमा तइया जो भावोजा य दुक्करा पडिमा। तं अणगार ! गुणागर तुमंपि हियएण चिंतेहिं // 434 // सोऊण निसासमए नलिणिविमाणस्त वराणणं धीरो।संभरियदेवलोबो उज्जेणि अवंतिसुकुमालो॥४३५॥ चित्तूण समणदिक्खं नियमुझिय-सबदिव्वाहारो। बाहिं वंसकुडंगे पायवगमणं निवराणो उ // 436 // वोसट्टनिसटुंगो तहिं सो भुल्लंकियाइ खइयो उ / मंदरगिरिनिवकंपं तं दुकरकारयं वंदे // 437 // मरणंमि जरस मुक्क सुकुसुमगंधोदयं च देवेहिं / अजवि गंधवई सा तं च कुडंगी-सरहाणं // 438 // जह तेण तत्थ मुणिणा सम्मं सुमणेण इंगिणी तिराणा / तह तूरह उत्तमट्टतं च मणे सन्निवेसेह // 431 // जो निच्छएण गिराहइ देहचाएवि न अट्ठियं कुणइ / सो साहेइ सकज्जं जह चंदवसियो राया // 440 // दीवाभिग्गहधारी दूसहघणविणय-निचलनगिंदो / जह सो तिरांणपइराणो तह तूरह तुम पइन्नंमि ॥४४१॥जह दमदंतमहेसी पडयकोरव मुणी थुयगरहियो। श्रासि समो दुराहपि हु एव समा होह सव्वस्थ // 442 ॥जह खंदगसीसेहिं सुकमहामाण-संसियमणेहिं / न कयो मणप्पयोसो पीलिज्जतेसु जंतंमि // 443 // तह धनसालिभदा अणगारा दोवि तवमहिडीया / वेभारगिरिसमीवे नालंदाए समीमि // 444 // जुअलसिलासंथारे पायवगमणं उवगया जुगवं / मासं श्राणगं ते वोसट्टनिसट्टसव्वंगा॥ 445 ॥सीयायव-झडियंगा लग्गुद्धिय-मंसराहारुणि विणट्ठा / दोवि अणुत्तरवासी महसिणो रिद्धिसंपराणा // 446 // अच्छेरयं च लोए ताण तहिं देवयाणुभावेणं / श्रज्जवि

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