Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 121
________________ 11] भीमदागमैसुधासिन्धुः / अष्टमों विभागर एसु / वसियो उब्धियमाणो जीवो कुडिलम्मि संसारे // 316 // मणुयत्तणेवि बहुविह विणिवाय-सहस्सभेसण-घणम्मि / भोगपिवासाणुगो वसियो भय(व)पंजरे जीवो // 317 // वसियं दरीसु वसियं गिरीसु वसियं समुद्दमन्झसु / रुस्खग्गेसु य वसियं संसारे संसरतेणं // 318 // पीयं थणअच्छीरं सागरसलिलायो बहुयरं हुजा / संसारम्मि श्रणते माईणं श्ररणमराणाणं // 31 // नयणोदगंपि तासि सागरसलिलायो बहुयरं हुजा / गलियं रुयमाणीणं माईणं अण्णमण्णाणं // 40 // नत्थि भयं मरणसमं जम्मणसरिसं न विजए दुक्खं / तम्हा जरमरणकरं छिंद ममत्तं सरीरायो // 401 // अन्नं इमं सरीरं अरणो जीवृत्ति निच्छियमईयो / दुक्खपरीकेसकरं विंद ममत्तं सरीरायो॥ 402 // जावइयं किंचि दुहं सारीरं माणसं च संसारे / पत्तो अणंतखुत्तो कायस्त ममत्तदोसेणं // 403 // तम्हा सरीरमाई अभितर बाहिरं निरवसेसं / विंद ममत्तं सुविहिय ! जइ इच्छसि मुचिउ दुहाणं // 404 // सव्वे उबसग्ग परीसहे य तिविहेण निजिणाहि लहु / एएंसु निजिएसु होहिसि धाराहयो मरणे // 405 // मा हु य सरीरसंतावियो श्र तं झाहि अट्टरुहाई / सुठ्ठवि रूवियलिंगेवि अट्टहाणि स्वंति // 406 // मित्तसुयबंधवाइसु इटाणिढे सु इंदियत्थेसु / रागो वा दोसो वा ईसि मणेणं नकायब्वो / / 407 // रोगायकसु पुणो विउलासु य वेयणासुइन्नासु / सम्मं अहियासंतो इणमो हियएण चिंतिजा // 408 // बहुपलियसागराई सोडाणि मे नरयतिरियजाईसु। किं पुण सुहावसाणं इणमो सारं नरदुहंति ? // 401 // सोलस रोगायंका सहिया जह चकिणा चउत्थेणं / वाससहस्सा सत्त उ सामराणधरं उवगएणं // 410 // तह उत्तमट्टकाले देहे निरक्खयं उबगएणं / तिलछित्तलावगा इव श्रायंका विसहियघायो // 411 // पारियवायगभत्तो राया पट्ठीइ सेट्ठिणो मूढो / अच्चुराहं परमन्नं दासी य सुकोवियमणुस्सा // 412 // सा य सलिलुललोहिय-मंसवसा-पेसिथिग्गलं

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