Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 120
________________ प्रकीर्णकानि / 10 भीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] [106 यंतो भावणुभावाणुरत सिरले तो। तदिवस मरिउकामो व होइ माणग्मि उज्जुत्तो // 371 // नरगतिरिक्खगईसु य माणुसदेवत्तणे वसंतेणं / जं सुहदुक्खं पत्तं तं अणुचिंतिज संथारे॥३८०॥ नरएसु वेयणायो अणोवमा सीयउणहवेरा(गा)यो। कायनिमित्तं पत्ता अणंतखुत्तो बहुविहायो॥ 381 // देवत्ते माणुस्से पराहियोगत्तणं उवगएणं / दुक्खपरिक्केसविही अणंतखुत्तो समणुभूया // 382 // भिन्निंदियपंचिंदिय-तिरिक्खकायम्मि णेगसंठाणे / जम्मणमरणरहट्ट अणंतखुत्तो गयो जीवो // 383 // सुविहिय ! अईयकाले अणंतकाएसु तेण जीवेणं / जम्मणमरणमणंतं बहुभवगहणं समणुभूयं // 384 // घोरम्मि गम्भवासे कलमलजंबाल-असुइबीभच्छे / वसियो अणंतखुत्तो जीवो कम्माणुभावेणं // 385 // जोणीमुह निग्गच्छतेण संसार इमे(रिमे)ण जीवेणं / रसियं अबीभच्छ कडीकडाहंतरगएणं // 386 // जं असियं बीभन्छ अईयोरम्मि गम्भवासम्मि / तं चिंतिऊण सयं मुक्खम्मि मई निवेसिजा // 387 // वसिऊण विमाणेसु य जीवो पसरंतमणिमहेसु / वसियो पुणोवि सुच्चिय जोणिसहस्संधयारेसु॥ 388 // वसिऊण देवलोए निच्चुजोए सयंपमे जीयो / वसइ जलवेग-कलमल-विउल-बलयामुहे घोरे // 381 // वसिऊण सुरनरीसर-चामीयररिद्धि-मणहरबरेसु / वसियो नरगनिरंतर-भयभेरवपंजरे जीवो // 310 // वसिऊण विचित्तेसु अ विमाणगणमाण सोमसिहरेसु / वसइ तिरिएसु गिरि-गुहविवर-महाकंदरदरीसु॥३६१॥भुत्तावि भोगसुहं सुरनरखयरेसु पुण पमाएणं / पियइ नरएसु भेरव-कलंत-तउतंबाणाई // 312 // सोऊण मुइयणरवइ-भवे श्र जयसमंगलखोघं / सुणइ नरएसु दुहपरं अक्कंदुद्दामसहाई // 313 // निहण हण गिराह दह पर उबंध पबंध बंध रुदाहि / फाले लोले घोले थूरे खारेहि से गत्तं // 314 // वेयर. णिखारकलिमल-वेसल्लंकुसल-करकयकुलेसु / वसियो नरएसु जीयो हाहणघणघोरसद्दे सु॥ 315 // तिरिएसु व भेरवसद-पक्षण-परपरख / छणास

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