Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 118 ] [ श्रीमदागमनुवासिन्धुः / अष्टमो विमागः मे अन्नो जीवो अन्नो देहुसि मनिजा // 531 // पुत्वावर-दाहिणउत्तरेण वाएहिं अावडतेहिं / जह नवि कंपइ मेरू तह झाणायो नवि चलंति // 532 // पढमम्मि य संघयणे वट्टते सेलकुड्डसामाणे / तेसिपिय वुच्छेश्रो चउदसपुवीण वुच्छेए // 533 // पुढविदगश्रगणिमाख्य-तरुमाइ तसेसु कोइ साहरइ। वोसट्टचत्तदेहो अहाउयं तं परि(डि)विखजा // 534 // देवो नेहेण णए देवागमणं च इंदगमणं वा / जहियं इड्डी कंता सव्यसुहा हुँति सुहभावा / / 535 // उबसग्गे तिविहेवि य अणुछले चेव तह य पडिकूले / सम्मं अहियासंतो कम्मवखयकारयो होइ॥ 536 // एवं पायोवगम इंगिणि पडिकम्म वरिणयं सुत्ते / तिस्थयरगणहरेहि य साहूहि य सेवियमुयारं // 537 // सव्वे सव्वद्धाए सव्वन्नू सब्बकम्मभूमीसु / सव्वगुरू सव्वहिया सव्वे मेरुसु अहिसित्ता // 538 // सव्वाहिवि लद्धीहिं सव्वेऽवि परीसहे पराइत्ता / सवेऽविय तित्थयरा पायोवगयाउ सिद्धिगया॥ 531 // श्रवसेसा अणगारा तीयपडप्पन्नऽणागया सव्वे / केई पायोवगया पञ्चवखाणिंगिणिं केई // 540 // सव्वावि अ अजायो सम्वेऽवि य पढमसंघयणवजा। सव्वे य देसविरया पञ्चक्खाणेण य मरंति // 541 // सव्वसुहप्पभवायो जीवियसारायो सव्वजणिगायो। श्राहारायो रयणं न विजए उत्तम लोए // 542 // विग्गभहगए य सिद्धे मुत्तुं लोगम्मि जंमिया जीवा / सब्वे सव्वावत्यं पाहारे हुँति पाउत्ता // 543 // तं तारिसगं रयणं सारं जं सव्वलोय-रयणाणं / सव्वं परिचइत्ता पायोवगया प(रि)विहरंति // 544 // एयं पायोवगमं निप्पडिकम्मं जिणेहिं पन्नत्तं / तं सोऊणं खमत्रो ववसायपर. कम कुणइ // 545 // धीरपुरिसपराणत्ते सप्पुरिसनिसेविए परमरम्मे / धराणा सिलायलगया निरावयक्का णिवज्जतिं // 546 // सुव्वंति य अणगारा घोरासु भयाणियासु अडवीसु। गिरिकुहर-कंदरासु य विजणेसु य रुक्खहेटेसु॥ 547 // धीधणिय-बद्धकच्छा भीया जरमरण-जम्मणसयाणं / सेल
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