Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ 108] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः केइ सिद्धिं उविति सुप्तमाहिमरणेणं // 362 // एवं बहुपयारं तु अवायं उत्तमढकालम्मि / दंसंति अवायगणू सल्लुद्धरणे सुविहियाणं // 363 // दिति य सिं उपएस गुरुणो नाणाविहेहिं हेऊहिं / जेण सुगइं भयंतो संसारभय दुबाद दुहो) होइ // 364 // न हु तेसु वेयणं खलु अहो चिरम्मित्ति दारुणं दुक्खं / सहणिज्ज देहेणं मणसा एवं विचितिजा / / 365 // सागरतरणथमइ इयस्स पोयस्त जए (उजवे) धूवे / जो रज्जु (रक्ख) मुक्खकालो न सो विलंबत्ति काययो // 366 // तिल्लविहूणो दीवो न चिरं दिप्पइ जगम्मि पञ्चक्खं / न य जलरहियो मच्छो जिग्रइ चिरं नेव उपमाई // 367 // अन्नं इमं सरीरं यन्नोऽहं इय मणम्मि ठविजा। जं सुचिरेणऽवि मोच्चं देहे को तत्थ पडिबंधो ? // 368 // दूरस्थंपि विणासं अवस्समावं उवट्ठियं जाण / जो श्रह वट्टइ कालो अणागयो इत्थ यासिराहा // 366 // जं सुचिरेणवि होहिइ अणावसं तंमि को ममीकारो ? / देहे निस्संदेहे पिएवि सुयणतणं नत्थि // 370 // उबलद्धो सिद्धिपहो न य अणुचरणो पमायदोसेणं / हा जीव ! अप्पवेरिय ! न हु ते एयं न तिपिहिः // 371 // नत्थि य ते संघयणं घोरा य परीसहा अहे निरया। संतारो य असारो अइपमायो य तं जीव ! // 372 // कोहाइकसाया खलु बीयं संसारभेरवदुहाणं / तेसु पमतेसु सया कलो सुक्खो य मुक्खो वा ? // 373 // जायो परव्वसेणं संसारे वेयणायो घोरायो / पत्तायो नारगत्ते यहुया तायो विचिंतिजा / / 374 // इसिंह सयं वसिस्स उ निरुपमसुक्खापसाणमुदूयं(कडुयं)। कल्लाणमोसहं पिव परिणामसुहं न तं दुक्खं // 375 / / संबंधि बंधवेसु य न य अणुरायो खणंपि काययो / तेचिय हुँति अमित्ता जह जणणी बंभदत्तस्स // 376 // वसिऊण व सुहिमज्झे वचइ एगाणियो इमो जीवो / मोत्तूण सरीरवरं जह काहो मरणकालम्मि // 377 // इसिंह व मुलुत्तेणं गोसे व सुएं व अद्ररत्ते वा / जस्स न नजइ वेला कदिवसं गच्छिई जीवो ? // 378 // एवमणुचिंत
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/63d7c1986ddb0426e8d40f806134e258fc14bf6acbfe9be22a709147c648f277.jpg)
Page Navigation
1 ... 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152