Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 104) [ श्रीमदागमसुभासिन्धुः / अष्टमो विभागी तं तं सवायरेण करणिज्ज / मुच्चइ हु ससंवेगी अणंतश्रो होइ असंदेगी। // 216 // धम्म जिणपगणतं सम्मतमिणं सदहामि तिविहेणं / तसबायरभूयहियं पंथं निव्वाणमग्गस्स // 1 // (प्रत्यंतरेऽधिका) // समणोऽहंति य पढमं बीयं सम्बत्थ संजयोमित्ति / सव्वं च वोसिरामी जिणेहिं जं जं पडिक्कुटुं // 217 // मणसावि अचितणिज्जं सव्वं भामाइ अभासणिज्जं च / कारण अकरणिज्जं वोसिरि तिविहेण सावज्जं // 218 // अस्संजम-वोसिरणं उबहिविवेगो तहा उवसमो श्र। पडिरूव-जोगविरियो खंतो मुत्तो विवेगो. य / / 211 // एवं पञ्चक्खाणं पाउरजण श्रावईसु भावेणं / अनतरं पडिबन्नो जपतो पावइ समाहिं // 300 // मम मंगलमरिहंता सिद्धा साहू सुयं च धम्मो य / ते से सरणोवगो सावज्जं वोसिरामित्ति॥ 301 // (इति सिरिमरणविभत्तिसुए संलेहणासुयं सम्मत्तं // 2 // अथ बाराहणासुर्य) सिद्धे उवसंपन्नो अरिहंते केवली य भावेण / इत्तो एगतरेणवि पएण बाराहयो होइ // 302 / / सम्इ नदेयणो पुण समणो हिययम्मि किं निवेसिजा ? श्रालंबणं च काई काऊण मुणी दुहं सहइ ? 303 // नरएसु अणुत्तरेसु श्र अणुत्तरा वेयणायो पत्तायो / वट्टतेण पमाए तायोवि. अणंतसो पत्ता // 304 // एयं सयं कयं मे रिणं व कम्मं पुरा असायं तु। तमहं एस धुणामी मणम्मि सत्तं निवेसिजा // 305 // नाणाविह-दुक्खेहि य समुइन्नेहि उ सम्म सहणिज्ज / न य जोवो उ अजीवो कयपुब्बो वेयणाईहिं // 306 // भुजयं विहारं इत्थं जिणमदेसियं विउपसत्थं / नाउं महापुरिस-सेवियं जं अभूजयं मरणं ॥३०७॥जह पच्छिमम्मि काले पच्छिमतिन्थयर-देसियमुयारं। पच्छानिच्छयपत्थं उवेइ अन्भुजयं मरणं // 308 // छत्तीस-मट्टि(मंडि)याहि य कडजोगीजोग संगहबलेणं // उजमिऊणं बारसविहेण तवनियमठाणेणं // 30 // संसाररं. गमज्झे धिइवल-सन्नद्ध-बद्धकन्छायो / हतूण मोहमल्लं हराहि धाराहण पडागं // 310 / पोराणयं च कम्मं खवेइ अन्नन्नबंधणाया यं (इं)। कम्मकलंकल
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