Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ प्रकीर्णकानि :: 10 श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] [15 वलिं छिदइ संथारमारूढो // 311 // धीरपुरिसेहिं कहियं सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं / उत्तिराणोमि हु रंग हरामि धाराहणपडागं // 312 ॥धीर पडा. गाहरणं करेहि जह तंसि देसकालम्मि / सुत्तस्थमणुगुणितो धिदिनचलबद्धकच्छायो॥ 313 // चत्तारि कसाए तिनि गारवे पंच इंदियग्गामे / जिणिउं परिसहसहे हराहि बाराहणपडागं // 314 // न य मणसा चिंतिजा जीवामि चिरं मरामि व लहुति / जइ इच्छसि तरिउं जे संसारमहो अहिंमपारं // 315 // जइ इच्छसि निसरिउं सव्वेसिं चेव पावकम्माणं जिणवयणनाणदमणचरित्त-भावुज्जुयो जग्ग // 316 // दंसणनाणचरित्ते तवे य बाराहणा चउक्खंधा / सा चेव होइ तिविहा उक्कोसा मज्झिम जहराणा // 317 // श्राराहेऊण विऊ उक्कोसाराहणं चउक्खधं / कम्मरयविष्पमुको तेणेव भवेण सिज्झिज्जा // 318 // श्राराहेऊण विऊ मझिमबाराहणं चउवखंधं / उक्कोसेण य चउरो भवे उ गंतूण सिझिजा // 31 // धाराहेऊण विऊ जहन्नमाराहणं चउपखंधं / सत्त? भवग्गहणे परिणामेऊण सिझिजा // 320 ॥धीरेणवि मरियव्वं काउरिसेणवि अवस्स मरियव्वं / तम्हा अवस्समरणे वरं खु धीरत्तणे मरिउं // 321 // एवं पञ्चक्खाणं अणुपालेऊण सुविहियो सम्मं / वेमाणियो व देवो हविज अहवावि सिज्झिज्जा // 322 // एसो सवियारकयो उवक्कमो उत्तमट्टकालम्मि / इत्तो उ पुणो वुच्छं जो उ कमो होइ अवियारे॥३२३ // साहू कयसलेहो विजियपरीसह-कसायसंताणो। निजवए मग्गिजा सुयरयण-रहस्सनिम्माए // 324 // पंचममिए तिगुत्ते श्रणिस्सिए रागदोसमयरहिए। कडजोगी कालगणू नाणचरणदसणसमिद्धे // 325 // मरणसमाहीकुसले इंगियपत्थिय-सभाववेत्तारे।ववहारविहिविहिराणू अन्भुजयमरणसारहिणो॥ 326 // उव-एसहेउकारण-गुणनिसढा णायकारणविहराणू / विराणाणनाणकरणो-वयारसुय-धारणसमत्थे // 327 // एगंतगुणे रहिया बुद्धीइ चउविहाइ उववेया / छंदगणू पव्वइया पञ्चवखाणंमि य
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