Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 112
________________ प्रकीर्णकानि : 1. श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ) बहुयाणि / तं मरणं मरियव्वं जेण मत्रो सुम्मश्रो (मुक्को ) होई // 245 // कइया णु तं मुमरणं पंडियमरणं जिणेहि पराणत्तं। सुद्धो उद्धियसल्लो पायोवगमं मरीहामि // 246 // संसारचकवाले सव्वेवि य पुग्गला मए बहुसो / श्राहारिया य परिणामिया य न य तेसु तित्तोऽहं // 247 / / श्राहारनिमित्तेणं मच्छा वच्चंतिऽणुत्तरं नरयं / सञ्चित्ताहारविहिं तेण उ मणसावि निच्छामि // 248 // तणकट्टण व अग्गी लवणसमुद्दोव नईसहस्सेहिं / न इमो जीवो सको तिप्पेउं कामभोगेहिं // 24 // लवणयमुहसामाणो दुप्पूरो धणरयो अपरिमिजो। न हु सको तिप्पेउं जीवो संसारियसुहेहिं // 250 // कप्पतरु-संभवेसु य देवुत्तरकुरुवंसपसूएसु। परिभोगेण न तित्तो न य नरविजाहर-सुरेसु॥२५१॥ देविंद-चकवट्टित्तणाई रजाइं उत्तमो भोगा। पत्ता अणंतखुत्तो न यऽहं तित्तिं गयो तेहिं // 252 // पयक्तीरुच्छुरसेसु य साऊसु महोदहीसु बहुसोवि / उववन्नो न य तराहा छिन्ना ते सीयल-जलेहिं // 253 // तिविहेणवि सुहमउलं जम्हा कामरइ-विसयसुवखाणं। बहुसोवि समणुभूयं न य तुह तराहा परिच्छिराणा / / 254 // जा काइ पत्थणायो कया मए रागदोसवप्सएणं / पडिबंधेण बहुविहा तं निंदे तं च गरिहामि // 255 // हंतूण मोहजालं चित्तूण य पट्टकम्म-संकलियं / जम्मणमरणरहट्ट भितण भवा णु मुचिहिसि // 256 // पंच य महब्बयाई तिविहं तिविहेणं थारुहेऊणं / मणवयणकायगुत्तो सन्जो मरणं पडिच्छिज्जा(लहिज्जा) // 257 / कोहं माणं मायं लोहं पिज्जं तहेव दोसं च / चइऊण अप्पमत्तो रक्खामि महब्बए पंच // 258 // कलहं अभक्खाणं पेमुन्नपि य परस्स परिवायं / परिवजितो गुत्तो रक्खामि महब्बए पंच // 25 // किराहा नीला काऊ लेसं झाणाणि अप्पसत्थाणि / परिवजितो गुत्तो रक्खामि मह. बए पंच // 260 // तेऊ पम्हं सुक्कं लेसा झाणाणि सुप्पसत्थाणि / उवसं. पनो जुत्तो. रक्खामि महव्वए पंच // 261 // पंचिंदियसंवरणं पंचेव

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