Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 10.] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमों विभाग उत्तमट्टकालम्मि / दुल्लहबोहीयत्तं अणंतसंसारियत्तं च // 228 // तो उद्धरंति गारवरहिया मूलं पुणब्भव-लयाणं / मिच्छादसणसल्लं मायासल्लं नियाणं च // 221 / / कयपावोऽवि मणूसो थालोइय निंदिय गुरुसगासे / होइ अइरेगलहुश्रो श्रोहरियभरुव्व भारवहो // 230 // तस्स य पायच्छित्तं जं मग्गविऊ गुरू उवइसति / तं तह अणुचरियव्वं अणवत्थपसंगभीएणं // 231 // दसदोस-विप्पमुक्कं तम्हा सव्वं अगृह(मग्ग)माणेणं / जं किंचि कयमकज्ज अालोए तं जहावत्तं // 232 // सव्वं पाणारंभं पचक्खामित्ति अलियवयणं च / सव्वं अदिन्नदाणं अब्बंभ-परिग्गहं चेव / / 233 // सव्वं च असणपाणं चउब्विहं जा य बाधिरा उवही। अभितरं च उवहिं जावजीवं तु वोसिरामि // 234 // कंतारे दुभिवखे पायंक वा महया समुष्पन्ने। जं पालियं न भग्गं तं जाणसु पालणासुद्धं // 235 ॥रागेण व दोसेण व परिणामेण व न दूसियं जं तु / तं खलु पञ्चक्खाणं भावविसुद्धं मुणेयव्वं // 236 // पीयं थणअच्छीरं सागरसलिलाउ बहुयरं हुजां / संसारे संसरंतो माऊणं अन्नमन्नाणं // 237 // नत्थि किर सो पएसो लोए वालग्गकोडिमित्तोऽवि / संसारे संसरंतो जत्थ न जायो मयों वाऽवि // 238 // चुलसीई किर लोए जोणीणं पमुह सयसहस्साई / इकिकमि य इत्तो अणंतखुत्तो समुप्पन्नो // 231 // उड्डमहे तिरियम्मि य मयाणि बालमरणाणिऽणंताणि / तो ताणि संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि // 240 // माया मित्ति पिया मे भाया भजत्ति पुत्त धूया य। एयाणिचिंतयंतो पंडियमरणं मरीहामि // 241 // मायापिइ-बंधूहिं संसारत्थेहिं पूरिश्रो लोगो। बहुजोणि-निवासीहिं न य ते ताणं च सरणं च / / 242 // इक्को जायइ मरइ इको अणुहवइ दुक्यविवागं। इको अणुसरइ जीयो जरमरण-चउग्गई-गुविलं // 243 // उव्वेयणयं जम्मण-मरणं नरएसु वेयणायो य / एयाणि संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि // 244 // इक्क पंडियमरणं छिदइ जाईसयाणि
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