Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ [ श्रीमदागंमसुधासिन्धुः अष्टमो विमागा मिश्रो जिणाहि तं पंच इंदिए सुट्ठ / तिहिं गारवेहिं रहियो होह तिगुत्तो य दंडेहिं // 115 // सन्नासु पासवेसु अ अट्टे रहे अतं विसुद्धप्पा। रागदोसपवंचे निजिणिउं सम्वणोज्जुत्तो // 116 // को दुवखं पाविज्जा ? कस्स य सुक्खेहिं विम्हो हुजा ? / को व न लभिज मुक्खं ? रागदोसा जइ न हुन्जा // 117 // नवि तं कुणइ अमितो सुटछ विय विराहियो समत्थोवि / जं दोवि अनिग्गहिया करंति रागो य दोसो य // 118 // तं मुयह रागदोसे सेयं चिंतेह अप्पणो निच्चं / जं तेहिं इच्छह गुणं तं बुक्कह बहुतरं पच्छा // 16 // इहलोए श्रायासं अयसं च करिति गुणविणासं च / पसर्वति य परलोए सारीरमणोगए दुक्खे // 200 // घिद्धी ग्रहो अकज्ज जं जाणं तोऽवि रोगरोसेहिं / फलमउलं कडुपरसं तं चेव निसेवए जीगे // 201 // तं जइ इच्छसि गंतु तीरं भवसायरस्स घोरस्स / तो तवसंजम-भंडं सुविहिय ! गिराहाहि तूरंतो / 202 // बहुभयकर-दोसाणं सम्मत्तचरित्तगुणविणासाणं / न हु वसमागंतव्वं रागहोसाण पावाणं // 203 // जं न लहइ सम्मत्तं लभ्रूणवि जं न एइ वेरग्गं / विसयसुहेसु य रजइ सो दोसो रागदोसाणं // 204 // भवसयसहस्स-दुलहे जाइजरामरण-सागरुत्तारे। जिणवयणम्मि गुणागर ! खणमवि मा काहिसि पमायं // 205 // दब्बेहिं पंजवेहि य ममत्तसंगेहिं सुठ्ठवि जियप्पा / निप्पणय-पेमरागो जइ सम्मं नेइ मुक्खत्थं // 206 // एवं कयसलेहं अभितर-बाहिरम्मि संलेहे / संसारमुक्ख. बुद्धी अनियाणो दाणि विहराहि // 207 // एवं कहिय समाही तहविह संवेग-करणगंभीरो / पाउरपञ्चक्खाणं पुणरवि सीहावलोएणं // 208 // न हु सा पुणरत्तविही जा संवेगं करेइ भरणंती। अाउरपञ्चक्खाणे तेण कहा जोइया भुजो // 201 // एस करेमि पणामं तित्थयराणं अणुत्तरगईणं। सव्वेसिं च जिणाणं सिद्धाणं संजयाणं च // 210 // जं किंचिकि दुचरियं तमहं निंदामि सव्वभावणं। सामाइयं च तिविहं तिविहेण करेमप्रणागारं // 211 //
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