Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 16] भीमदागमसुभासिन्धुः / अष्टमी विमागः स्सय-वजणं च विगईविवेगं च // 16 // उग्गम-उप्पायण-एसणा-विसुद्धिं च परिहरणसुद्धिं / सन्निहि-संनिचर्यमि य तववेयावच्च-करणे य // 161 // एवं करंतु सोहि नवसारय-सलिल-नहयल-सभावा / कमकाल-दव्वपजव-अत्तपरजोगकरणे य // 162 // तो ते कयसोहीया पच्छित्ते फासिए जहाथामं / पुप्फावकिनयम्मि य तवम्मि जुत्ता महासत्ता // 163 / / तो इंदिय-परिकम्म करिति विसयसह-निग्गहसमत्था। जयणाइ अप्पमत्ता रागदोसे पयणुयंता॥१६४॥ पुव्वमकारिय-जोगा समाहिकामावि मरणकालम्मि / न भवंतिपरीसहसहा विसयसु. हपमोइया-अप्पा॥१६५॥ इंदियसुह-साउलयो घोरपरीसह-पराइयपरभो / अकय-परिकम्म-कीवो मुझइ अाराहणाकाले॥१६६॥बाहंति इंदियाई पुवि दुन्नियमियप्पयाराई / अकय-परिकम्मकीवं मरणे सुत्रसंपउत्तंपि // 167 // श्रागममयप्पभाविय इंदियसुह-लोलुयायइट्ठस्स / जइवि मरणे समाही हुज न सा होइ बहुयाणं // 168 // असमत्तसुयोऽवि मुणी पुब्धि सुकयपरिकम्म-परिहत्थो / संजमनियम-पइन्नं सुहमत्तहियो समराणेइ // 161 // न चयंति किंचि काउं पुचि सुकयपरिकम्म-जोगस्स। खोहं परीसहचर घिईबल-पराइया मरणे। 170 // तोतेऽवि पुवचरणा जयणाए जोगसंगह-विहीहिं। तो ते करिति दसणचरित्तसइ भावणाहेउं // 171 // जा पुब्वभाविया किर होइ सुई चरणदंसणे बहुहा / सा होइ बीयभूया कयपरिकम्मरस मरणम्मि // 172 / / तं फासेहि चरित्तं तुमंपि सुहमीलयं पमुत्तूणं / सव्वं परीसहचमू अहियासंतो धिबलेणं // 173 // सद्दे रूवे गंधे रसे य फासे य सुविहिय ! जणेहिं / सव्वेसु कसाएसु अनिग्गहपरमो सया होहि // 174 // सव्वे रसे पणीए निज्जूहेऊण पंतलुक्खेहिं / अन्नयरेणु-वहाणेण संलिहे अप्पगं कमसो॥ 175 // संलेहणा य दुविहा अभितरिया य बाहिरा चेव / श्रभितरिय कसाए बाहिरिया होइ य सरीरे॥ 176 // उग्गम-उप्पायण-एसणा-विसुद्धेण असणपाणेणं / मियविरस-जुक्खलूहेण दुबलं कुणसु अप्पागं // 177 // उल्लीणोल्लीणेहि
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