Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 64] ... श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / अष्टमो विभागः मायति / / 126 // अणसणमूणोयरिया वित्तिच्छेत्रो रसस्स परिचायो। कायस्म परिकिलेसो छट्टो संलीणया चेव // 127 / / विणए वेयावच्चे पायच्छित्ते विवेग सझाए / अभितरं तवविहिं छटुंझाणं वियाणाहि // 12 // बारसविहम्मिवि तवे अभितरबाहिरे कुसलदि? / नवि अस्थि नवि य होही समायसमं तवोकम्मं // 121 // जे पयणुभत्तपाणा सुयहेऊ ते तवस्सिो समए / जो अ तवो सुयहीणो बाहिरयो सो छुहाहारो॥१३०॥ छट्टट्ठमदस. मदुवालसेहिं अबहुसुयस्स जा सोही / तत्तो बहुतरगुणिया हविज जिमियस्स नाणिस्स // 131 // कल्लं कल्लंपि वरं पाहारो परिमित्रो अ पंतो श्र। न य खमणो पारणए बहु बहुतरो बहुविहो होइ / / 132 // एगाहेण तवस्सी हविज नत्थित्य संसयो कोइ / एगाहेण सुयहरो न होइ धंतपि तूरमाणो // 133 // सो नाम अणसणतवो जेण मणो मंगुलं न चिंतेइ / जेण न इंदियहाणी जेण य जोगा न हायंति॥ 134 // जं अन्नाणी कम्म खवेइ बहुअाहिं वासकोडीहिं / तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ उसासमिरेणं // 135 // नाणे पाउत्ताणं नाणीणं नाणजोगजुत्ताणं / को निजरं तुलिज्जा चरणे य परकमंताणं ? // 136 // नाणेण वजणिज्ज वजिजइ किजई य करणिज्ज / नाणी जाणइ करणं कजमकज्जं च वज्जेउं // 137 // नाणसहियं चरितं नाणं संपायगे गुणसयाणं / एस जिणाणं थाणा नत्थि चरित्तं विणा णाणं // 138 // नाणं सुसिक्खिय वं नरेण लभ्रूण दुल्लहं बोहिं / जो इच्छइ नाउं जे जीवस्स विसोहणामग्गं // 13 // नाणेण सव्वभावा णज्जती सबजीवलोयंमि / तम्हा नाणं कुसलेण सिक्खियव्यं पयत्तेणं // 140 // न हु सका नासेउं नाणं अरहंतभासियं लोए / ते धन्ना ते पुरिसा नाणी य चरित्तजुत्ता य // 141 // बंधं मुक्खं गइरागयं च जीवाण जीवलोयम्मि / जाणंति सुयसमिद्धा जिणसासण-चेइयविहिरा // 142 // भद्द सुबहुसुयाणं सवपयत्येसु पुच्छणिजाणं / नाणेण जोऽवयारे सिद्धिपि
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