Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 62] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः सूरी / ते पवयणसुहकेऊ छत्तीसगुणत्ति नायव्वो // 12 // तेसिं मेरुमहोयहिमेयणि-ससिसूर-सरिसकप्पाणं / पायमूले य विसोही करणिज्जा सुविहियजणेणं // 13 // काइयवाइय-माणसिय-सेवणं दुप्पयोगसंभूयं / जो अइयारो कोई तं पालोए अगृहितो // 14 // अमुगंमि इग्रोकाले अमुगत्थे अमुगगामभावेणं / जं जह निसेवियं खलु जेण य सव्वं तहाऽलोए // 15 // मिच्छादंसणसल्लं मायासल्लं नियाणसल्लं च / तं संखेवा दुविहं दव्वे भावे यबोद्धव्वं // 16 // वि(ति)विहं तु भावसल्लं दंसणनाणे चरित्तजोगे य / सच्चित्ताचित्तेऽविय मीसए यावि दव्वंमि // 17 / / सुहुमंपि भावसल्लं अणुद्धरित्ता उ जो कुणइ कालं / लजाय गारवेण य न हु सो धाराहयो भणियो॥१८॥ तिविहंपि भावसल्लं समुद्धरित्ता उ जो कुणइ काले / पवजाई सम्मं स होइ बाराहो मरणे // 16 // तम्हा सुत्तरमूलं अविकूलमविदुयं अणुविग्गो / निम्मोहिय-मणिगूढं सम्मं धालोथए सव्वं // 100 // जह बालो जंपंतो कजमकजं च उज्जुयं भणइ / तं तह बालोएजा मायमय-विप्पमुक्को य // 101 // कयपावोऽवि माणूमो पालोइय निंदिउं गुरुसगासे / होइ अइरेगलहुयो योहरियभरोब भारवहो // 102 // लजाइ गारवेण य ज नालोयंति गुरुसगासम्मि / धंतपि सुयसमिद्धा न हु ते बाराहगा हुति / / // 103 // जह सुकुसलोवि विजो अन्नस्म कहेइ अत्तणो वाहिं / तं तह श्रालोयव्वं सुट्ठवि ववहारकुमलेणं // 104 // जं पुव्वं तं पुव्वं जहाणुवि जहक्कम सव्वं / पालोइन सुविहियो कमकालविहिं अभिदंतो॥ 105 // अत्तंपरजोगेहि य एवं समुवट्टिए पयोगेहि। अमुगेहि य अमुगेहि य अमुयग-संगणकरणेहिं // 106 // वराणेहि य गंधेहि य सदफरिस-रसरुवगंधेहिं (सद्देहि य रसफरिसठाणेहिं)। पडिसेवणा कया पजवेहिं कया जेहि य जहिं च // 107 // जो जोगयो अपरिणामश्रो श्र दंसणचरित्तइयारो / छट्ठाण बाहिरो वा छट्ठाणभतरो वावि // 108 // तं उज्जुभावपरिणउ रागं दोसं च पयणु
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