Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 101
________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः णायो पंच इमा हुति संकिलिट्ठायो। आराहिंत सुविहिया जा निच्चं वजणिजायो // 51 // कंदप्पा देवकिविस अभियोगा आसुरी य संमोहा। एयाउ संकिलिट्ठा असंकिलिट्ठा हवइ छट्ठा // 6 // कंदप्प कोकुयाइय दवसीलो निचहासणकहायो। विम्हावितो उ परं कंदप्पं भावणं कुणइ // 61 // नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघसाहूणं / माई अवराणवाई किधिसियं भावणं कुणइ // 62 // मंताभियोगं कोउग भूईकम्मं च जो जणे कुणइ / सायरसइदिहेउं अभियोगं भावणं कुणइ // 63 // अणुबद्धरोस-बुग्गह-संपत्त तहा निमित्तपडिसेवी / एएहिं कारणेहिं अासुरियं भावणं कुणइ // 64 // उम्मग्गदेसणा नाणमग्गदूसणा मग्गविप्पणासो अ। मोहेण मोहयंतसि भावणं जाण सम्मोहं // 65 // एयाउ पंच वजिय इणमो छट्ठीइ विहर तं धीर ! / पंचसमियो तिगुत्तो निस्संगो सवसंगेहिं // 66 // एयाए भावणाए विहर विसुद्धाइ दीहकालम्मि / काऊण अंतसुद्धिं दंसणनाणे चरित्ते य // 67 // पंचविहं जे सुद्धिं पंचविहविवेगसंजयमकाउं / इह उवणमंति मरणं ते उ समाहिं न पाविति // 68 // पंचविहं जे सुद्धिं पत्ता निखिलेण निच्छयमईया / पंचविहं च विवेगं ते हु समाहिं परं पत्ता // 6 // लहिऊणं संसारे सुदुल्लहं कहवि माणुसं जम्मं / न लहंति मरणदुलहं जीवा धम्मं जिणक्खायं // 70 // किच्छाहि पावियम्मिवि सामराणे कम्मसत्तियोसन्ना / सीयंति सायदुलहा पंकोसनो जहा नागो // 71 // जह कागणीइ हेउं मग्रियणाणं तु हारए कोडिं / तह सिद्धसुहपरुखखा अबुहा सज्जति कामेसु // 72 // चोरो रक्खसपहयो अत्थत्थी हणइ पंथियं मूतो। इय लिंगी सुहरवखसपहयो विसयोउरो धम्मं // 73 // तेसुवि अलद्धपसरा अवियराहा दुविखया गयमईया / समुर्विति मरणकाले पगामभयभेरवं नरयं // 74 // धम्मो न को साहू न जेमियो न य नियंसियं सराहं / इसिंह परं परासुत्ति य नेव- य पत्ताई सुक्खाई // 75 // साहूणं नोवकयं परलोयच्छेय संजमो न करो / दुहनोऽवि

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