Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 100
________________ [9 प्रकीर्णकानि :: 10 श्रीमरणसमाधिप्रकीर्णकम् ] पुबिल्लाण इमाण य भणिया धाराहणा चेव // 41 // जह पुबटुअगमणो करणविहीणोऽवि सागरे पोयो / तीरासन्नं पावइ रहियोऽवि श्रवल्लगाईहिं // 42 // तह सुकरणो महेसी तिकरण थाराहयो धुवं होइ / ग्रह लहइ उत्तमट्टतं अइलाभत्तणं जाण / / 43 // एस समासो भणियो परिणामवसेण सुविहियजणस्त / इत्तो जह करणिज्ज पंडियमरणं तहा सुणह // 44 // फासेहिंति चरितं सव्वं सुहसीलयं पजहिऊणं / घोरं परीसहचमु अहिया. सिंतो घिनलेणं // 45 // सद्दे स्वे गंधे रसे य फासे य निग्विणधिईए। सब्वेसु कसाएसु य निहंतु परमो सया होहि // 46 // चइऊण कसाए इंदिए य सव्वे य गारवे हेतु। तो मलियरागदोसो करेह धाराहणासुद्धिं // 17 // दंसणनाणचरित्ते पव्वजाईसु जो य अड्यारो।तं सव्वं बालोयहि निरवसेसं पणिहियप्पा // 48 // जह कंटएण विद्धो सव्वंगे वेयणहियो होइ / तह चे उद्रियंमि उ निसलो निवुयो होइ // 41 // एवमणुद्धियदोसो माइलो तेण दुक्खियो होइ / सो चेव चत्तदोसो सुविसुद्धो निव्वयो होइ // 50 // रागदोसाभिहया ससल्लमरणं मरंति जे मूढा / ते दुवखसल्लबहुला भमंति संसारकंतारे // 51 // जे पुण तिगारवजढा निस्सल्ला दंसणे चरिते य / विहरंति मुक्कसंगा खवंति ते सधदुक्खाई // 52 // सुचिरमवि संकिलिट्ठ विहरितं भागसंवरविहीणं / नाणी संवरजुत्तो जिणइ ग्रहोरत्तमित्तेणं // 53 // जं निजरेइ कम्मं असंवुडो सुबहुणाऽवि कालेणं / तं संवुडो तिगुत्तो खवेइ ऊसासमित्तेणं // 54 // सुबहुस्सुयावि संता जे मूदा सीलसंजमगुणेहिं / न करंति भावसुद्धिं ते दुक्खनिभेलणा हुँति // 55 // जे पुण सुयसंपन्ना चरित्तदोसेहिं नोवलिप्पंति। ते सुविसुद्धचरित्ता करंति दुवखक्खयं साहू // 56 // पुब्वमकारियजोगो समाहिकामोऽवि मरणकालम्मि / न भवइ परीसहसहो विसयसुहपराइयो जीवो // 57 // तं एवं जाणंतो महंतरं लाहगं सुविहिएसु। दंसणचरित्तसुद्धीइ निस्सल्लो विहर तं धीर ! // 58 // इत्थ पुण भाव

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