Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमदानासपुर : अष्टो निभाका उवमया उवाएम। तस्स डबाए उ इमा परिकम्मविही उ जुजीया // 24 // जे कुम्म-संखताडण-मारुजिन-गगणपंकय-तरूणं / सरिकप्पा सुयकप्पियश्राहारविहारचिट्ठागा // 25 // निचं तिदंडविरया तिगुत्तिगुत्ता तिसल्लनिसल्ला / तिविहेण अप्पमत्ता जगजीवदयारा समणा // 26 // पंचमहव्ययसुत्थिय संपुराणचरित्त सीलसंजुत्ता / तह तह मया महेसी हवंति बाराहगा समणा // 27 // इक्कं अप्पाणं जाणिऊण काऊण अत्तहिययं च / तो नाणदंसणचरित्त-तवसु सुट्ठिया मुणी हुति॥ 28 // परिणामजोगसुद्धा दोसु य दो दो निरासयं पत्ता / इहलोए परलोए जीवियमरणासए चेव // 21 // संसारबंधणाणि य रागहोसनियलाणि चित्तूणं / सम्मदसणसुनिसिय-सुतिक्खधिइ-मंडलग्गेणं // 30 // दुप्पणिहिए य पिहिऊण तिन्नि तिहिं चेव गारवविमुक्का / कायं मणं च वायं मणवयसा कायसा चेव // 31 // तवपरसुणा य चित्तूण तिरिण उजुखंतिविहिय-निसिएणं / दुग्गइमग्गा नरिएण मणवयसा कायर दंडे // 32 // तं नाऊण कसाए चउरो पंचहि य पंच हन्तूणं / पंचासवे उदिराणे पंचहि य महव्वयगुणेहिं // 33 // छज्जीवनिकाए रक्खिऊण छलदोसवजिया जइणो। तिगलेसापरिहीणा पच्छिमलेसातिगजुत्रा य // 34 // एकगदुगतिगचउपण-सत्तट्ठगनव-दमगंठाणेसु / श्रसुहेसु विप्पहीणा सुभेसु सय संठिया जे उ // 35 // वेयणवेयावच्चे इरियट्टाए य संजमट्ठाए। तह पाणवत्तियाए छ8 पुण धम्मचिंताए // 36 // छसु गणेसु इमेसु य अण्णयरे कारणे समुप्पराणे / कडजोगी श्राहारं करंति जयणानिमित्तं तु // 37 // जोएसु किलायंती सरीरसंकप्प-चे?मचयंता / अविकप्पावजभीरू उविति अब्भुजयं मरणं // 38 // श्रायके उवसग्गे तितिक्खयाभचेरगुत्तीसु / पाणिदयातवहेउं सरीरपरिहार वुच्छेत्रो॥ 31 // पडिमासु सीहनिकीलियासु घोरेसुऽभिग्गहाईसु / छच्चिय अभितरए बझे य तवे समणुरत्ता॥ 40 // अविकलसीलायारा पडिवन्ना जे उ उत्तमं श्रद्ध।
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