Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 98
________________ प्रकीर्णकानि 5-10 भीमरणसमाषिप्रकीर्णकम् ] [80 हरिस वसुभिन्न-रोमंचो॥६॥उवएसहेउकुसलं तं पवयणरयणसिरिघरं भणइ / इन्छामि जाणिउं जे मरणसमाहिं समासेणं // 7 // अभुज्जुयं विहारं इच्छं जिणदेसियं विउपसत्थं / नाउं महापुरिसदेसियं तु अभुज्जुयं मरणं // 8 // तुभित्थ सामि / सुश्रजलहि-पारगा समणसंघनिजवया / तुझ खु पायमूले सामन्नं उजमिस्सामि // 1 // सो भरियमहुरजलहर-गंभीरसरो निसन्नो भणइ / सुण दाणि धम्मवच्छल ! मरणसमाहिं समासेणं // 10 // सुण जह पच्छिमकाले पच्छिमतित्थयर-देसियमुयारं / पच्छा निच्छियपत्थं उविति अभुज्जुयं मरणं // 11 // पबजाई सव्वं काऊणालोयणं च सुविसुद्धं / दमणनाणवरित्ते निस्सल्लो विहर चिरकालं // 12 // पाउव्वेय-समत्ती तिगिच्छिर जह विसारो विजो। रोत्रायंकागहियो सो निस्यं श्राउरं कुणड // 13 // एवं पवयणसुयसार-पारगो सो चरित्तसुद्धीए / पायच्छित्त. विहिन्नू तं अणगारं विसोहेइ ॥१४॥भणइ यतिविहा भणिया सुविहिय! थाराहणा जिणिदेहिं / सम्मत्तम्मि य पढमा नाणचरित्तेहिं दो अण्णा // 15 // सद्दहगा पत्तियगा रोयगा जे य वीरवयणस्स / सम्मत्तमणुसरंता दंसणाराहगा हुति // 16 // संसारसमावराणे य छबिहे मुक्खमस्सिए चेव / एए दुविहे जीवे श्राणाए सबहे निव्वं // 17 // धम्माधम्मागासं च पुग्गले जीवमत्थिकायं च / प्राणाइ सहहता सम्मत्ताराहगा भणिया // 18 // अरहंतसिद्धचेइय-गुरूसु सुयधम्मसाहुवग्गे य / पायरियउवज्झाए पव्वयणे सवसंचे य // 16 // एएसु भतिजुता पूयंता अहरहं श्रणराणमणा / सम्मत्तमणुसरिन्ता परित्तसंसारिया हुति // 20 // सुविहिय ! इमं पइराणं श्रसदहतेहिं रोगजीवेहिं / बालमरणाणि तीए मयाइं काले अणंताई // 21 // एगं पंडियमरणं मरिऊण पुणो बहूणि मरणाणि / न मरंति अप्पमत्ता चरि. त्तमाराहियं जेहिं // 22 // दुविहम्मि अहक्खाए सुसंवुडा पुव्वसंगोमुक्का / जे उ चयंति सरीरं पंडियमरणं मयं तेहिं // 23 // एवं पंडियमरणं जे धीरा

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