Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ प्रकीर्णकानि / श्रीदेवेन्द्रस्तुप्रकीर्णकम् ] लोयग्गे य पइट्ठिया / इहं बोंदिं चइत्ताणं, तत्थ गंतूण सिझई // 281 // जं संगणं तु इहं भवं चयंतस्त चरमसमयम्मि / प्राप्ती य पएसघणं तं संठाणं तहिं तस्स // 282 // दीहं वा हस्सं वाजं संठाणं हविज चरमभवे / तत्तो तिभागहीणा सिद्धाणोगाहणा भणिया // 283 // तिन्नि सया छासट्ठा धणुत्तिभागो य होइ बोद्धब्बो / एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिया // 284 // चत्तारि य रयणीयो रयणी तिभागणिया य बोद्धव्वा / एसा खलु सिद्धाणं मज्झिमयोगाहणा भणिया / / 285 // इका य होइ रयणी अट्ठव य अंगुलाई साहीया। एसा खलु सिद्धाणं जहराणयोगाहणा भणिया // 286 // योगाहणाइ सिद्धा भवत्तिभागेण हुँति परिहीणा / संठाणमणित्यंत्थं जरामरणविप्पमुक्काणं // 287 // जत्थ य एगो सिद्धो तत्थ अणंता भवक्ख विमुक्का / अन्नुन्नसमोगाढा पुट्ठा सव्वे अलोगते // 288 // असरीरा जीवघणा उवउत्ता दंसणे य नाणे य / सागारमणागारं लवखणमेयं तु सिद्धाणं // 281 // फुसइ अणंते सिद्धे सव्वपएसेहिं णियमसो सिद्धो। तेवि असंखिजगुणा देसपएसेहिं जे पुट्ठा // 210 // केवलनाणुवउत्ता जाणंती सव्वभावगुणभावे / पासंति सम्बयो खलु केवलदिट्ठीयणंताहिं // 211 // नाणंमिदंसणम्मि य इत्तो एगयरम्मि उवउत्ता। सव्वस्स केवलिस्सा जुगवं दो नत्थि उवयोगा // 212 // सुरगणसुहं समत्तं सम्बद्धापिंडियं श्रणंतगुणं / नवि पावइ मुत्तिसुहं ताहिं वग्गवग्गूहिं // 213 // नवि अस्थि माणुसाणं तं सुक्खं नवि य सबदेवाणं / जं सिद्धाणं सुक्खं अवाबाहं उपगयाणं // 214 // सिद्धस्त सुहो रासी सम्बद्धापिंडियो जइ हविजा / णंतगुणवग्ग मइयो सव्वागासे न माइजा // 215 / / जह नाम कोइ मिन्छो नयरगुणे बहुविहे वियाणंतो। न चएइ परिकहेउं उवमाए तहिं असंतीए // 216 // इथ सिद्धाणं सुक्खं अणोवमं नत्थि तस्स ग्रोवम्म / किंचि विसेसेणित्तो सारिक्खमिणं सुणह वुच्छ // 217 // जह सव्वकाम
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