Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ प्रकीर्णकानि ! 10 श्रीमस्पसमाधिप्रकीर्णकम् ] .. काऊणं / तिविहेण उद्धरिजा गुरुपामूले अहिंतो ॥१०॥नवि तं सत्थं च विसं च दुप्पउत्तु व कुणइ वेयालो।जंतंव दुप्पउत्तं सप्पुब्ब पमाइणो कुद्धो॥११॥ जं कुणइ भावसल्लं अणुद्धियं उत्तमट्ठकालम्मि / दुल्लहबोहीयत्तं च अणंतसंसारियत्तं च // 111 // तो उद्धरंति गारवरहिया मूलं पुणब्भव-लयाणं / मिच्छादंमणसल्लं मायासल्लं नियाणं च // 112 // रागेण व दोसेण व भएण हासेण तह पमाएणं / रोगेणायंकण व वत्तीइ पराभियोगेणं // 113 / / गिहि. विजा-पडिएण व सपक्ख-परधम्मियोवसग्गेणं / तिरियं-जोणिगएण व दिव्वमणूसोवसग्गेणं // 114 // अहिइ व नियडीइ व तह सावयपेल्लिएण व परेणं / अपाण भएण कयं परस्स छंदाणुवत्तीए // 115 // सहसकार-मणाभोगयो अ जं पवयणाहिगारेणं / सन्निकरणे विसोही पुराणागारो य पराणत्ता // 116 // उज्जुअमालोइत्ता इत्तो प्रकरणपरिणाम जोगपरिसुद्रो / सो पयणुइ पइकम्मं सुग्गइमग्गं अभिमुहेइ // 117 // उवहीनियडिपइटो सोहिं जो कुणइ सोगईकामो / माई पलिकुंचतो करेइ बुंदुछियं मूढो // 118 / / थालोयणाइदोसे दस दोग्गइबंधणे परिहरंतते। तम्हा पालोइजा मायं मुत्तूण निस्सेसं // 111 ॥जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु गणेसु / ते तह अलोएमी उबट्ठियो सव्वभावेणं // 120 // एवं उवट्ठियस्सवि बालोएवं विसुद्धभावस्स / जं किंचिवि विस्सरियं सहसकारेण वा चुक्कं // 121 // थाराहयो तहवि सो गारव-परिकुंचणामविहूणो। जिणदेसियस्स धीरो सह. हगो मुत्तिमग्गस्त // 122 // श्राकंपण 1 अणुमाणण 2 जंदिट्ठ 3 बायरं 4 च सुहुमं 5 च / छन्नं 6 सदाउलगं 7 बहुजण 8 अवत्त 1 तस्सेवी // 123 // पालोयणाइ दोसे दस दुग्गइवडणा यमुत्तूणं / आलोइज सुवि. हियो गारवमाया-मयविहूणो // 124 // तो परियागं च बलं पागम कालं च कालकरणं च। पुरिसंजीयं च तहा खित्तं पडिसेवणविहिं च॥१२५॥ जोग्गं पायच्छित्तं तस्स य दाऊण बिति पायरिया / दसणनाणचरित्ते तवे य कुणमप्प
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