Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 86
________________ प्रकीर्णकानि :: 6 श्रीदेवेन्द्रस्तवप्रकीर्णकम् ] [ 75 // 106 // तिन्नेव उत्तराई पुणव्वसू रोहिणी विसाहा य / वच्चंति मुहुत्ते तिन्नि चेव वीस चाहोरत्ते // 107 // अवसेसा नक्खत्ता पराणरसवि सूरसहगया जंति / बारस चेव मुहुत्ते तेरस य समे अहोरत्ते // 108 // दो चंदा दो सूरा नक्खत्ता खलु हवंति छप्पन्ना / छावत्तरं गहसयं जंबुद्दीवे वियारीणं // 106 // इक्कं च सयसहस्सं तित्तीसं खलु भवे सहस्साई / नव य सया पराणासा तारागणकोडिकोडीणं // 110 // चत्तारि चेव चंदा चत्तारि य सूरिया लवणतोये(जले) / वारं नक्खत्तसयं गहाण तिन्नेव बावन्ना // 111 // दो चेव सयसहस्सा सत्तट्टि खलु भवे सहस्साई / नव य सया लवणजले तारागणकोडिकोडीणं // 112 // चउवीसं ससिरविणो नवखत्तसया य तिरिण छत्तीसा / इक्कं च गहसहस्सं छप्पन्नं धायईसंडे // 113 // अटेव सयमहस्सा तिरिण सहस्सा य सत्त य सया उ। धायईसंडे दीवे तारागणकोडिकोडीणं // 114 // बायालीसं चंदा बायालीसं च दिणयरा दित्ता। कालोदहिमि एए चरंति संबद्धलेसागा // 115 // नक्खत्तमिगसहस्सं एगमेव छावरिं च सयमन्नं / छच्च सया छन्नउया महग्गहाण तिनि य सहस्सा // 116 // अट्ठावीसं कालोदहिम्मि बारस य सयसहस्साई। नव य सया पन्नासा तारागणकोडिकोडीणं // 117 // चोयालं चंदसयं चोयालं चेव सूरियाण सयं / पुक्खरखरम्मि एए चरंति संबद्धलेसाया // 118 // चत्तारिं च सहस्सा बत्तीसं चेव हुति नवखत्ता / छच्च सया बावत्तर महग्गहा बारस सहस्सा // 111 ॥छन्नउइ सयसहस्सा चोयालीसं भवे सहस्साई। चत्तारी य सयाइं तारागणकोडिकोडीणं // 120 // बावत्तरिं च चंदा बावत्तरि. मेव दिणयरा दित्ता। पुवखरखरदीवड्ढे चरंति एए पगासिंता // 121 // तिरिण सया छत्तीसा छच सहस्सा महग्गहाणं तु / नक्खत्ताणं तु भवे सोलाणि दुवे सहस्साणि // 122 // अडयालीसं लक्खा बावीसं खलु भवे सहस्साई / दो य सय पुक्खरद्धे तारागणकोडिकोडीणं // 123 // बत्तीसं

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