Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ प्रकीर्णकानि / / 6 श्रीदेवेन्द्रस्तप्रकीर्णकम् ] [79 कप्पे सत्तरस भवे महासुक्के // 176 // कप्पम्मि सहस्सारे अट्ठारस सागरोवमाई ठिई / एगूणवीसाऽऽणयकप्पे वीसा पुण पाणए कप्पे // 177 // पुराणा य इकवीसा उदहिसनामाण श्रारणे कप्पे / यह अच्चुयम्मि कप्पे बावीसं सागराण लिई // 178 // एसा कप्पवईणं कप्पठिई वरिणया समासेणं / गेविजणुत्तराणं सुण अणुभागं विमाणाणं // 171 // तिराणेव य गेविजा हिहिला मन्भिमा य उवरिल्ला / इकिकपि य तिविहं नव एवं हुति गेविजा // 180 // सुदंसणा अमोहा य, सुप्पबुद्धा जसोधरा। वच्छा सुवच्छा सुमणा, सोमणसा पियदंसणा // 181 // एकारसुत्तरं हेट्ठिमए सत्तुत्तरं च मज्झिमए / सयमेगं उवरिमए पंचेव अणुत्तरविमाणा // 182 // हेटिमगेविजाणं तेवीसं सागरोवमाई ठिई। इकिकमारुहिज्जा अहिं सेसेहिं नमियंगी ! // 183 // विजयं च वेजयंतं जयंतमपराजियं च बोद्धव्वं / सव्वट्ठसिद्धनाम होइ चउराहं तु मज्झिमयं // 184 // पुब्वेण होइ विजयं दाहिणयो होइ वेजयंतं तु। अवरेणं तु जयंतं अवराइयमुत्तरे पासे // 185 // एएसु विमागोसु उ तित्तीसं सागरोवमाई ठिई / सबट्ठसिद्धनामे अजहन्नुकोस तित्तीसा // 186 // हिट्ठिला उवरिला दो दो जुयलद्धचंदसंठाणा / पडिपु. राणचंदसंठाण-संठिया मज्झिमा चउरो॥ 187 // गेविजाऽऽवलिसरिसा गेविजा तिरिण तिगिण यासन्ना / हुल्लुयसंटाणाई अणुत्तराई विमाणाई // 188 // घणउदहिपइट्टाणा सुरभवणा दोसु हुति कप्पेसु / तिसु वाउपइट्टाणा तदुभयसुपइट्ठिया तिनि // 181 // तेण परं उवरिमया भागासंतरपइट्ठिया सव्वे। एस पइट्ठाणविही उड्ड लोए विमाणाणं // 110 // किराहा नीला काऊ तेऊलेसा य भवणवंतरिया। जोइससोहम्मीसाणं तेउलेसा मुणेयव्वा // 111 // कप्पे सणंकुमारे माहिंदे चेव बंभलोए य / एएसु पम्हलेसा तेण परं सुक्कलेसा उ॥ 112 // कणगत्तयरत्तामा सुरवसभा दोसु हुँति कप्पेसु / तिसु हुति पम्हगोरा तेण परं सुकिल्ला देवा // 113 // भवणवइवाणमंतर-जोइसिया
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