Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 91
________________ [ श्रीमदाममसुभासिन्धुः * अटमो विनामा हुँति सत्तरयणीया। कप्पवईणऽइसुदरि ! सुण उच्चत्तं सुरवराणं // 114 // सोहम्मीसाणसुरा उच्चत्ते हुलि. सत्तरयणीया / दो दो कप्पा तुल्ला दोसुवि परिहायए रयणी // 115 // गेविज्जेसु य देवा रयणीयो दुन्नि हुति उच्चायो / रयणी पुण उच्चत्तं अणुत्तरविमाणवासीणं // 116 // कप्पायो कप्पम्मि उ जस्स ठिई सागरोवमन्भहिया। उस्सेहो तस्स भवे इकारसभागपरिहीणो॥ 117 // जो अविमाणुस्सेहो पुढवीणं जं च होइ बाहल्लं / -दुराहंपि तं पमाणं बत्तीसं जोयणसयाई॥११८॥ भवणवइवाणमंतर-जोइसिया हुति कायावियारा / कप्पवईणवि सुंदरि ! वुच्छं पवियारणविही उ // 11 // सोहम्मीसाणेसु सुरवरा हुति कायपवियारा / सणंकुमारमाहिदेसु फासपवियारया देवा // 20 // बंभे लंतयकप्पे सुरवरा हुति रूवपवियारा। महसुकसहस्सारे सद्दपवियारया देवा // 201 // प्राणयपाणयकप्पे पारण तह अच्चुए सुकप्पम्मि / देवा मणपवियारा तेण परं चूअपवियारा // 202 / / गोसीसागुरुकेयइ-पत्तपुन्नाग-बउलगंधा य / चंपयकुवलयगंधा तगरेलसुगंधगंधा य // 203 // एसा णं गंधविही उवमाए वरिगया समासेणं / दिट्ठीएवि य तिविहा थिरसुकुमारा य फासेणं // 204 // तेवीसं च विमाणा चउरासीई च सयसहस्साई। सत्ताणउई सहस्साई उडलोए विमाणाणं // 205 // अउणाणउई सहस्सा चउरासीइं च सयसहस्साई / एग्रणयं दिवढ सयं च पुष्पावकिराणाणं // 206 // सत्तेव सहस्साइं सयाई बावत्तराई अट्ठ भवे / श्रावलियाइ विमाणा सेसा पुष्फावकिराणाणं // 207 // श्रावलिाइ विमाणाण अंतरं नियमसो असंखिज्ज। संखिजमसंखिज्जं भणियं पुप्फावकिन्नाणं // 20 // श्रावलियाइ विमाणा वट्टा तंसा तहेव चउरंसा / पुप्फावकिराणया पुण अणेगविह-रूवसंगणा // 201 // वट्ट खु वलयगंपिव तंसा सिंघाडयंपिव विमाणा। चउरंसविमाणा पुण अक्खाडयसंठिया भणिया // 21 // पदमं वट्टविमाणं बीयं तंसं तहेव चउरंसं। एगंतरचउरंसं पुराणोवि व

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