Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ प्रकीर्णकानि : 7 गच्छाचरप्रकीर्णकम् ] . [ 57 उवहिं च सिज्ज उग्गमउप्पायणेसणासुद्धं / चारित्तरक्खणट्ठा सोहिंतो होइ सत्ररित्ती // 21 // अप्परिस्सावी सम्मं समपासी चेव होइ कज्जेसु / सो रक्खइ चक्खुपिव सबालवुड्ढाउलं गच्छं // 22 // सीया वेइ विहारं सुहसीलीगुणेहिं जो अबुद्धीयो / सो नवरि लिंगधारी संजमजोए(सारे)ण निस्सारो // 23 // कुलगा मनगररज्जं पयहिश्र जो तेसु कुइ श्र ममत्तं / सो नवरि लिंगधारी संजमजोएण निस्सारो // 24 // विहिणा जो. उ चोएइ, सुत्तं प्रत्थं च गाहए / सो धराणो सो य पुराणो य, स बंधू मुक्खदायगो // 25 // स एव भव्वसताणं, चक्खुभूए विवाहिए / दंसेइ जो जिणुट्टि, अणुट्ठाणं जहट्टिग्रं // 26 // तित्थयरसमो सूरी सम्मं जो जिणमयं पयासेइ / श्राणं श्रइक्कमंतो सो कापुरिसो न सप्पुरिसो // 27 // भट्ठायारो सूरी भट्टायाराणुवेवखयो सूरी / उम्मग्गठियो सूरी तिनिवि मग्गं पणासंति // 28 // उम्मग्गठिए सम्मग्गनासए जो श्र सेवए सूरी। निश्रमेणं सो गोयम ! अप्पं पाडेइ संसारे // 26 // उम्मग्गठियो इक्कोऽवि नासए भव्वसत्तसंघाए / तं मग्गमणु. सरते जइ कुतारू नरो होइ // 30 // उम्मग्गमग्गसंपट्टियाण सूरीण गोश्रमा गुणं / संसारो य अणंतो होइ य सम्मग्गनासीणं / 31 // सुद्धं सुसाहुमग्गं कहमाको ठवइ तइयपक्खंमि / अप्पाणं इयरो पुण गिहत्थधम्मायो चुक्केति // 32 // जइवि न सबकं काउंसम्मं जिणभासियं अणुट्ठाणं तो सम्म भासिन्जा जह भणियं खीणरागेहिं // 33 // श्रोसन्नोऽवि विहारे कम्मं सोहेइ सुलभबोही थ। चरणकरणं विसुद्धं उवहितो परूवितो // 34 // सम्मग्गमग्गसंपट्ठियाण साहूण कुणइ वच्छल्लं / श्रोसहभेसज्जेहि श्र सयमन्नेणं तु कारेई // 35 // भूए अस्थि भविस्संति केइ तेलुक्नमित्रकमजुअला / जेसिं परहिअकरणेकव(ल)द्धलक्खाण वोलिही (कालो) // 36 // तीबाणागयकाले केई होहिंति गोत्रमा ! सूरी / जेसि नामग्गहणेवि हुज नियमेण
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