Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ [ श्रीमदगिमसुधीसिन्धुः / अष्टमी विभागः // 105 // कुड्डो बुट्ठो तहा सेहो, जत्थ रक्खे उवस्सयं / तरुणो वा जत्य एगागी, का मेरा तत्थ भासिमो ? // 106 // जत्थ य एगा खुडी एगा तरुणी उ रक्खए वसहिं / गोत्रम ! तत्थ विहारे का सुद्धी बंभचेरस्स ? // 10 // जत्थ य उवस्सयायो राइं गच्छे दुहत्थ(मुहुत्त)मित्तंपि। एगारत्तिं समणी का मेरा तत्थ गच्छस्स ? // 108 // जत्थ य एगा समणी एगो मसणो अ जंपए सोम्म ! / निबंधुणावि सद्धिं तं गच्छं गच्छगुणहीणं // 101 // जत्थ जयारमयारं समणी जंपइ गिहत्थपञ्चक्खं / पञ्चक्खं संसारे श्रजा पक्खिवइ. थप्पाणं // 110 // जत्थ य गिहत्थभासाइ भासए अजिया सुरुठ्ठावि / तं गच्छं गुणसापर ! समणगुणविवजियं जाण // 111 // गणि गोश्रम ! जा उचियं, सेयं वत्थं विवजिय। सेवए चित्तरूवाणि, न सा अजा विवाहियो // 112 // सीवणं तुन्नणं भरणं, गिहत्थाण तु जा करे। तिल्लउवट्टणं वावि, अप्पणो य परस्स य // 113 // गच्छइ सविलासगई सयणीय तूलियं सबिब्बोअं। उबट्टई सरीरं सिणाणमाईणि जा कुणइ // 114 // गेहेसु गिहस्थाणं गंतूण कहा कहेइ काहीथा। तरुणाइअहिवडते अणुजाणे सा उ पडिणीया // 115 // वुड्डाणं तरुणाणं रति अजा कहेइ.जा धम्मं / सा गणिणी गुणसायर ! पडणीया होइ गच्छस्त // 116 // जत्थ य समणीणमसंखडाई गछमि नेव जायंति। तं गच्छं गच्छवरं गिहत्थभासायो नो जत्थ // 117 // जो जत्तो वा जायो नालोअइ दिवसपविखणं वावि। सच्छंदा समणीयो मयहरयाए न ठयंति // 118 // विटलिपाणि पउंजंति गिलाणसेहीण नेव तिप्पंति। श्रणगाढे अागाढं करेंति श्रागादि अणगादं // 11 // अजयणाए पकुव्वंति, पाहुणगाण अवच्छला / चित्तलयाणि ... सेवंति, चित्ता रयहरणे तहा // 120 // गइविन्भमाइएहिं श्रागारविगार तह पगासिति / जह वुड्डाणवि मोहो समुईरइ किं नु तरुणाणं ? // 121 // बहुसो उच्छोलिंती मुहनयणे हत्थपायकक्खायो। गिरहेइ रागमंडल
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