Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ [ श्रीवदागमतुषासिन्धुः / / अष्टमी विभागा अग्गिसिह-अग्गिमाणव हुयासणवईवि दो इंदा // 11 // एए विकसिय. नयणे! दसदिसिविय-सियजसा मए कहिया। भवणवर-सुहनिसन्ने सुण भवणपरिग्गहमिमेसि // 20 // चमरवइरोत्रणाणं असुरिंदाणं महाणुभागाणं / तेसिं भवणवराणं चउसट्टिमहे सयसहस्से // 21 // नागकुमारि. दाणं भूयाणंद-धरणाण दुराईपि / तेसिं भवणवराणं चुलसीइमहे सयसहस्से // 22 // दो सुयणु ! सुरिणदा वेणूदेवे य वेणुदाली य / तेसिं भवणवराणं बावत्तरिमो सयसहस्सा // 23 // वाउकुमारिंदाणं वेलंवपमंजणाण दुराहंपि। तेसिं भवणवराणं छन्नवइमहे सयसहस्सा / 24 // चउसट्ठी असुराणं चुलसीई चेव होइ नागाणं / बावत्तरि सुवगणाणं वाउकुमाराण छन्नई // 25 // दीवदिसाउदहीणं विज्जुक्कुमारिंद-थणियमग्गीणं / छराईपि जुयलयाणं बा(बा)वत्तरिमो सयसहरसा // 26 // इकिकम्मि य जुयले नियमा बा(छा)वत्तरि सयसहस्सा। सुंदरि ! लीलाइ ठिए ठिईविसेसं निसामेहि // 27 // चमरस्स सागरोवम सुंदरि ! उकोसिया ठिई भणिया। साहीया बोद्धव्वा बलिस्स वइरोयणिंदस्स // 28 // जे दाहिणाण इंदा चमरं मुत्तूणं संसया भणिया। पलिश्रोवमं दिवड्ड लिई उकोसिया तेसिं // 26 // जे उत्तरेण इंदा बलिं पमुत्तूण सेसया भणिया / पलियोवमाइं दुरिण उ देसूणाई ठिई तेसिं // 30 // एसोवि ठिइविसेसो सुदरख्वे ! विसिट्ठरूवाणं / भोमिजसुरवराणं सुण अणुभागो सुनयराणं // 31 // जोयणसहस्समेगं श्रोगाहित्तण भवणनगराई। रयणप्पभाइ सव्वे इकारस जोयणसहस्से // 32 // अंतो चउरंसा खलु अहियमणोहर-सहाव. रमणिज्जा / बाहिरणोऽविय वट्टा निम्मलवइरामया सव्वे // 33 // उकिन्नंतर-फलिहा अभितरो उ भवणवासीणं। भवणनगरा विरायंति कणग-सुसिलिट्ठपागारा // 34 // वरपउमकरिणया मंडियाहिं हिट्ठा सहावलट्ठेहिं / सोहिंति पइट्ठाणेहिं विविहमणि-भत्तिचित्तेहिं // 35 // चंदण
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