Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ [ श्रीमागमसुभासिन्धुः / अष्टमी विमागः पच्छित्तं // 37 // जयो-सयरीभवंति अणविक्खयाइ जह भिववाहणा लोए। पडिपुच्छसोहिनोयण तम्हा उगुरू सया भयइ // 38 // जो उप्पमायदोसेणं, श्रालस्सेणं तहेव य / सीसवग्गं न चोएइ, तेण श्राणा विराहिया // 31 // संखेवेण मए सोम्म !, वरिणयं गुरुलक्खणं / गच्छस्स लक्खणं धीर !, संखेवेणं निसामय // 40 // गीयत्थे जे सुसंविग्गे, अणालसी दढव्वए। अक्खलियचरित्ते सययं, रागदोसविवजए // 41 // निट्ठवियअट्ठमयठाणे, सुसिकसाए जिइंदिए / विहरिजा तेण सद्धिं तु, छउमत्थेणवि केवली // 42 // जे अणहिअपरमत्था, गोत्रमा ! संजया भवे / तम्हा ते उ विविजिजा, दोग्गईपंथदायगे // 43 // गीत्थरस उ वयणेणं, विसं हलाहलं पिबे / निम्विकप्पो य भविखज्जा, तक्खणे जं समुद्दवे // 44 // परमत्थयो विसं णो तं, अमयरसायणं खु तं / निविग्धं जं न तं मारे, मोवि श्रमयस्समो // 45 // अगीयत्थस्स वयणेणं, अमयंपि न घुटए। जेण नो तं भवे अमयं, जं अगीयत्थदेसियं // 46 // परमस्थयो न तं अमयं, विसं हालाहलं खुतं / न तेण अजरामरो हुजा, तक्खणा निहणं वए // 47 // अगीयस्थकुसीलेहि, संग तिविहेण वोसिरे / मुक्खमग्गसिमे विग्धं, एहंमी तेणगे जहा // 48 // पजलियं हुयवहं दठ्ठ, निस्संको तत्थ पवेसिउं / अत्ताणं निद्दहिजाहि, नो कुसीलरस अल्लिए // 41 // पजलंति जत्थ धगधगधगस्स गुरुणावि चोइए सीसा। रागदोसेण विश्रणुसएण तं गोत्रम ! न गच्छं // 50 // गच्छो महाणुभावो तत्थ वसंताण निजरा विउला / सारणवारणचोअणमाईहिं न दोसपडिवत्ती // 51 // गुरुणो छंदणुवित्ती सुविणीए जिअपरीसहे धीरे / णवि थद्धे णवि लुद्धे णवि गारविए न विगहसीले // 52 // खते दंते गुत्ते मुत्ते वेरग्गमगमल्लीणे / दसविहसामायारीश्रावस्सगसंजमुज्जुत्ते॥ 53 // खरफरुसककसाएणिट्टदुट्ठाइ निठुरगिराए। निन्भन्छणनिद्धाडणमाईहिं न जे पउस्संति // 54 ॥जे य न अकित्तिजणए
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