Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : अष्टमो विभागः मासं संवच्छरंपि वा / संमग्गपट्टिए गच्छे, संवसमाणस्स गोयमा ! // 3 // लीलालसमाणस्स, निरुच्छाहस्त वीमणं / पक्खाविक्खीइ अन्नेसिं, महाणुभागाण साहूणं // 4 // उज्जमं सव्वथामेसु, घोरंवीरतवाइयं / लज्ज संकं अइकम्म, तस्स विरियं समुच्छले // 5 // वीरिएणं तु जीवस्स, समुच्छलिएणं गोयमा ! / जम्मंतरकए पावे, पाणि मुहुत्तेण निदहे // 6 // तम्हा निउणं निहालेउ, गछं सम्मग्गपट्टियं / वसिज तथ आजम्म, गोयमा ! संजए मुणी // 7 // मेही बालवणं खंभे, दिट्ठी जाणं सुउत्तमं / सूरी जं होइ गछस्स, तम्हा तं तु परिक्खर // 8 // भयवं ! केहि लिंगेहिं, सूरि उम्मगपट्ठिय ? / वियाणज्जा छउमत्थे, मुणी तं मे निसामय // 1 // सच्छंदयारिं दुस्सीलं, श्रारंभेसु पवत्तयं / पीढयाइपडिबद्धं, पाउकायविहिंसगं // 10 // मूलुत्तरगुणभट्ठ, सामायारीविराहधे / अदिनालोयणं निच्चं विगहपरायणं // 11 // छत्तीसगुसमन्नागएण तेणवि अवस्स दायब्वा / परसविखया विसोही सुट्ठवि ववहारकुसलेणं // 12 ॥जह सुकुसलोवि विज्जो अन्नस्स कहेइ अतणो वाहिं / विज्जुपएसं सुचा पच्छा सो कम्ममायरइ // 13 // देसं खित्तं तु जाणित्ता, वत्थं पत्तं उवस्सयं / संगहे साहुवग्गं च, सुत्तत्थं च निहालई // 14 // संगहोवग्गहं विहिणा, न करेइ अ जो गणी / समणं समणिं तु दिक्खित्ता, सामायारिं न गाहए (निगूहए) // 15 // बालाणं जो उ सीसाणं, जीहाए उवलिंपए। न सम्म मग्गं गाहेइ, सो सूरी जाण वेरियो // 16 // जीहाए विलिहंतो न भद्दयो सारणा जहिं नत्थि / डंडेणवि ताडतो स भद्दयो सारणा जत्थ // 17 // सीसोऽवि वेरियो सो उ, जो गुरु नवि बोहए। पमायमइरावत्थं, सामायारीविराहयं // 18 // तुम्हारिसावि मुणिवर ! पमायवसगा हवंति जइ पुरिसा / तो को अन्नो श्रम्हं श्रालंबण हुज संसारे ? // 11 // नाणंमि दंसणम्मि अ चरणमि य-तिसुवि समयसारेसु / चोएइ जो ठवेउं गणमप्पाणं च सो य गणी // 20 // पिंडं.
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