Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 54 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / अष्टमो विभागः अणन्नमणो // 14 // नरएसु वेश्रणाश्रो श्रणोवमाो असायबहुलायो / कायनिमित्तं पत्तो अणंतखुत्तो बहुविहारो // 15 // देवत्ते मणुत्ते पराभियोगत्तणं उवगएणं दुक्खपरिकिलेसकरी अणंतखुत्तो समणभूयो॥ 16 // तिरिअगई अणुपत्तो भीममहावेत्रणा अणोपरया(यारा) / जम्मणमरणऽरहट्टे अणंतखुत्तो परिभमियो // 17 // सुविहिश्र ! अईयकाले अणंतकालं तु श्रागयगएणं / जम्मणमरणमणंतं अणंतखुत्तो समणुभूयो // 18 // नत्थि भयं मरणसमं जम्मणसरिसं न विजए दुक्खं / जम्मणमरणायकं विंद ममत्तं सरीरायो // 16 // अन्नं इमं सरीरं अन्नो जीवत्ति निच्छयमईयो / दुक्खपरिकिलेसकरं छिंद ममत्तं० // 10 // जावंति केइ दुक्खा सारीरा माणसा व संसारे / पत्तो अणंतखुत्तो कायस्स ममत्तदोसेणं // 101 // तम्हा सरीरमाई सभितर बाहिरं निरवसेसं / छिंद ममत्तं सुविहिश्र ! जइ इच्छसि उत्तमं ठाणं // 102 // जगाहारी संघो सव्वो मह खमउ निरखसेसंपि। अहमवि खमामि सुद्धो मुणसंघायस्स संघस्स // 103 // आयरित्र उवज्झाए सीसे साहम्मिए कुलगणे य / जे मे केइ कसाया सब्वे तिविहेण खामेमि // 104 // सव्वस्स समणसंघस्स भगवयो अंजलिं करिश्र सीसे / सव्वं खमावइत्ता ग्रहमवि खामेमि सबस्स // 105 // सव्वस्स जीवरासिस्स भावो धम्मनिहियनियचित्तो। सव्वं खमावइत्ता ग्रहयपि खमामि सव्वेसि // 106 // इथ खामियाइयारो अणुत्तरं तवसमाहिमारूढो। पफोडतो विहरइ बहुविहबा(प्रायविवा)हाकरं कम्मं // 107 // जं बद्धमसंखिजाहिं असुभभवसयसहस्सकोडीहिं / एगसमएण विहुणइ संथारं श्रारहंतो य॥ 108 // इह तह विहारिणो से विग्धकरी वेश्रणा समु?ई / तीसे विझवणाए अणुसलुि दिति निजवया // 101 // जइ ताव ते मुणिवरा आरोविनवित्थरा अपरिकम्मा / गिरिपब्भार विलग्गा बहुसावयसंकर्ड भीमं // 11 // धीधणियबद्धकच्छा
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