Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 34. . - [ श्रीमदागमसुवतिन्धुः / अष्टमो विनाग - च्छह // 36 // छट्ठी उ हायणी नाम, जं नरो दसमस्सियो / विरजई श्र कामेसु), इंदिएसु पहायई // 37 // सत्तमी य पवंचा उ, जं नरो दसमस्सियो। निच्छुभइ चिकणं खेलं, खासई य खणे खणे // 38 // संकुइअवलीचम्मो, संपत्तो अट्ठमि दसं / नारीणं च अणिट्ठो य, जराए परिणामियो // 31 // नवमी मुम्मुहीनाम, जं नरो दसमस्सियो / जराघरे विणस्सने, जीवो वसई अकामयो॥ 40 // हीणभिन्नसरो दीणो, विवरीम्रो विचित्तश्रो (विरुवो)। दुबलो दुक्खियो सुयइ, संपत्तो दसमि दसं // 41 // दसगस्स उवक्खेवो वीसइवरिसो उ गिराहई विजं / भोगा य तीसगस्स य चत्तालीसस्स य विनाणं (बलमेव) // 42 // पन्नासयस्स चक्खु हायइ सटिक्कयस्स बाहुबलं / भोगा य सत्तरिस्स य, असीययस्सा य विन्नाणं // 43 // नउई नमइ सरीरं वाससए जीवियं पुणो चयइ / कित्तियोऽस्थ सुहो भागो दुहभागो य कित्तियो ? // 44 // जो वाससयं जीवइ, सुही भोगे य भुजई / तस्सावि सेविउं सेश्रो, धम्मो य जिणदेसियो॥ 45 // किं पुण सपञ्चवाए, जो नरो निचदुक्खियो। सुठ्ठयरं तेण कायव्वो, धम्मो य जिणदेसियो // 46 // नंदमाणो चरे धम्म, वरं मे लट्ठतरं भवे / अणंदमाणोवि चरे, मा मे पावतरं भवे // 47 // नवि जाई कुलं वावि, विजा वावि सुसिक्खिया। तारे नरं व नारिं वा, सव्वं पुराणेहिं वडई // 48 // पुराणेहिं हायमाणेहिं, पुरिसगारोऽवि हायई। पुराणेहिं वड्डमाणेहिं, पुरिसगारोऽवि वडई // 4 // पुराणाई खलु पाउसो ! किच्चाई करणिज्जाइं पीइकराई वनकराई धणकराई जसकराई कित्तिकराई, नो य खलु अाउसो! एवं चितेयव्वं-एसंति खलु बहवे समया श्रावलिया खणा आणापाणू थोवा लवा मुहुत्ता दिवसा ग्रहोरत्ता पक्खा मासा रिऊ अयणा संवच्छरा जुगा वाससया वाससहस्सा वाससयसहस्सा वासकोडीयो वासकोडाकोडीयो जत्थ णं अम्हे बहूई सीलाई वयाइं गुणाई वेरमणाई पञ्चक्खाणाई पोसहोववासाइं पडिवजिस्सामो
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