Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 61
________________ ..] . [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अष्टमो विभागः जं पवरं सबजीवलोगंमि / राहाया जत्थ मुणिवरा निव्वाणमणुत्तरं पत्ता // 22 // श्रासवसंवरनिजर तिनिवि अत्था समाहिश्रा जत्थ / तं तित्थंति भणंती सीलब्बयबद्धसोवाणा // 23 // भंजिय परीस. हचा उत्तमसंजमबलेण संजुत्ता। भुजंति कम्मरहिया निव्वाणमणुत्तरं रज्जं // 24 // तिहुश्रणरजसमाहिं पत्तोऽसि तुमं हि (पि) समयकप्पंमि। रज्जाभिसेयमउलं विउलफलं लोइ विहरंति॥२५॥ अभिनंदइ मे हिअयं तुम्भे मुक्खस्स साहणोगायो / जं लद्धो संथारो सुविहिश्र ! परमत्थनित्यारो // 26 // देवावि देवलोए भुजंता बहुविहाई भोगाई / संथारं चिंतंता श्रासणसयणाई मुचंति॥ 27 ॥चंदुब्व पिच्छणिजो सूरो इव तेअसा विदिप्पंतो। धणवंतो गुणवंतो हिमवंतमहंतविक्खायो // 28 // गुत्तीसमिइउवेश्रो संजमतवनिअमजोगजुत्तमणो। समणो समाहिश्रमणो दंसणनाणे अणन्नमणो // 26 // मेरुब पव्वयाणं सयंभुरमणुब्ब चेव उदहीणं / चंदो इव ताराणं तह संथारो सुविहिबाणं // 30 // भण केरिसस्स भणिश्रो संथारो केरिसे व अवगासे / उक्खंपिगस्स ( भिकस्स) करणं एवं ता इच्छिमो नाउं // 31 // हायति जस्स जोगा जरा य विविहा य हुँति पायंका / पारुहइ श्र संथारं सुविसुद्धो तस्स संथारो // 32 // जो गारवेण मत्तो निच्छइ पालोणं गुरुसगासे / पारुहइ अ संथारं अविसुद्धो तस्स संथारो // 33 // जो पुण पत्तभूत्रो करेइ पालोणं गुरुसगासे / बारहइ 10 सुवि० // 34 // जो पुण दंसणमइलो सिढिलचरित्तो करेइ सामन्नं / पारु० वि० // 35 // जो पुण दसणसुद्धो श्रायचरित्तो करेइ सामन्नं / श्रारु० सुवि० // 36 // जो रागदोसरहियो तिगुत्तिगुत्तो तिसल्लमयरहियो / पारुहइ. सुवि० // 37 // तिहिं गारवेहिं रहियो तिदंडपडिमोयगो परिअकित्ती / पारुहइ. सुवि० // 38 // चउविहकसायमहणो चउहिं विकहाहिं विरहियो निच्चं / पारुहइ. सुवि० // 31 // पंचमहव्वयकलियो पंचसु समिईसु सुट्ठ

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