Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 62
________________ प्रकीर्णकानि // 6 श्रीसंस्तारक-प्रकीर्णकम् ] थाउत्तो / पारुहइ० सुवि० // 40 // छक्काया पडिविरयो सत्तभयट्ठाणविरः हिश्रमईयो। पारुहइ० सुवि० // 41 // अट्ठमयट्ठाणजढो कम्मट्टविहस्स खवणहेउत्ति / थारुहइ० सुवि० // 42 // नवबंभचेरगुत्तो उज्जुत्तो दसविहे समणधम्मे / थारुहइ० सुवि० // 43 // जुत्तस्स उत्तमट्ठ मलिअकसायस्स निम्वियारस्स / भण केरिसो उ लाभो संथारगयस्स समणस्स ?॥४४॥जुत्तस्स उत्तम? मलिअकसायस्स निव्वधारस्स / भण केरिसं च सुक्खं संथारगयस्स खमगस्स ? // 45 // पढमिल्लुगंमि दिवसे संथारगयस्स जो हवइ लाभो / को दाणि तस्स सको अग्धं काउं अणग्यस्स // ४६॥जो संखिजभवट्टिइं सव्वंपि खवेइ सो तहिं कम्मं / अणुसमयं साहू वुत्तो तहिं समए // 47 // तणसंथारनिसन्नोऽवि मुणिवरो भट्टरागमयमोहो / जं पावइ मुत्तिसुहं कत्तो तं चक्कवट्ठीवि ? // 48 // तप्पु(नियपु०)रिसनाडयंमिवि न सा(जा)रई तह सहस्स (त्थ)वित्थारे / जिणवयणमिवि सा ते हेउसहस्सोवगूमि // 41 // जं रागदोसमइयं सुवखं जं होइ विसयमईयं च / अणुहवइ चकवट्टी न होइ तं वीपरागस्स // 50 // मा होउ वासगणयान तत्थ वासाणि परिगणिज्जति। बहवे गच्छं वुत्था जम्मणमरणं च ते खुत्ता // 51 // पच्छावि ते पयाया खिप्पं काहिति अप्पणो पत्थं / जे पच्छिमंमि काले मरंति संथारमारूढा // 52 // नवि कारणं तणमयो संथारो नवि अ फासुथा भूमी। अप्पा खलु संथारो हवइ विसुद्धे चरित्तंमि // 53 // निच्चपि तस्स भावुज्जुस्स जत्थ व जहिं व संथारो / जो होइ ग्रहक्खायो विहारमभुट्ठि(ज्जु)यो लूहो // 54 // वासारत्तमि तवं चित्तविचित्ताइ सुट्ठ काऊणं / हेमंते संथारं बारहइ सव्वश्वत्थासु // 55 // अासीय पोयणपुरे अजा नामेण पुष्फचूलत्ति / तीसे धम्मायरियो पविस्सुयो अनिथाउत्तो // 56 // सो गंगमुत्तरंतो सहसा उस्सारियो अ नावाए / पडिवन्न उत्तिमटुं तेणवि श्राराहियं मरणं // 57 // पंचमहव्वयकलिया पंचसया अजया

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