Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 59
________________ [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः // अष्टमो विमाना सूयराणं कहियपि निरत्थयं होइ // 30 // किं पुत्तेहिं पियाहि व प्रत्येण विढप्पिएणं (वि पिंडिएणं ) बहुएणं / जो मरणदेसकाले न होइ थालं. वणं किंचि // 31 // पुत्ता चयंति मित्ता चयंति भजावि णं मयं चयइ / तं मरणदेसकाले न चयइ सुबिइजो ( सुविअजियो) धम्मो // 32 // धम्मो ताणं धम्मो सरणं धम्मो गई पइट्ठा य / धम्मेण सुचरिएण य गम्मइ अयरामरं ठाणं // 33 // पीइकरो वराणकरो भासकरो जसकरो रइकरो य। अभयकरनिव्वुइकरो (य अभयकरो / निव्वुडकरो य सययं) पारत्तबिइजो धम्मो // 34 // अमरवरेसु अणोवमरुवं भोगोवभोगरिद्धी य / विनाणनाणमेव य ल भइ सुकरण धम्मेणं // 35 // देविंदचकवट्टि. त्तणाई रजाइं इच्छिया भोगा / एयाई धम्मलाभा फलाई जं वावि निवाणं // 36 // श्राहारो उस्सासो संधिछिरायो य रोमकूवाई। पित्तं रुहिरं सुक्कं गणियं गणियप्पहाणेहिं // 37 // एवं सोउं सरीरस्स वासाणं गणिय पागडमहत्थं / मुक्खपउमस्स ईहह सम्मत्त तहस्सपत्तस्स // 38 // एयं सगडसरीरं जाइजरामरणवेयणाबहुलं / तह घत्तह काउं जे जह मुबह सबदुक्खाणं // 31 // // तन्दुलवेयालीयपइराणयं सम्मत्तं // // इति श्रीतन्दुलवैचारिकप्रकीर्णकम् // 5 // // 6 // अथ श्रीसंस्तारक-प्रकीर्णकम् // काऊण नमुक्कारं जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्त / संथारंमि निबद्धं गुणपरिवाडि निसामेह // 1 // एस किराराहणया एस किर मणोरहो सुविहिाणं / एस किर पच्छिमंते पडागहरणं सुविहिपाणं // 2 // भूईगहणं जह नकयाण अवमाणयं अवज्झा(वऽझा)णस्स / मल्लाणं च पडागा तह संथारो सुविहियाणं // 3 // पुरिसवरपुंडरीश्रो अरिहा इव सव्वपुरिससीहाणं / महिलाण भगवईयो जिणजणणीयो जयंमि जहा // 4 // वेरुलिउव्व मणीणं गोसीस चंदणं व गंधाणं / जह व रयणेसु

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