Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 58
________________ [ 7 प्रकीर्णकानि // 5 श्रीतंदुलवैचारिकप्रकीर्णकम् ] लायो, पुरिसे मत्ते करंतित्ति पमयायो, महंतं कलिं जणयंतित्ति महिलियायो, पुरिसे हावभावमाइएहिं रमंतित्ति रामायो, पुरिसे अंगाणुराए करितित्ति अंगणाश्रो, नाणाविहेसु जुद्धभंडणसंगामाडवीसु मुहारणगिराहणसीउराहदुक्ख-किलेसमाइएसु पुरिसे लालंतित्ति ललणाओ, पुरिसे जोगनिश्रोएहिं वसे ठावितित्ति जोसियायो, पुरिसे नाणविहेहिं भावेहिं वरिणतित्ति वणिश्रायो, काई पमत्तभावं काई पणय सविन्भमं काई सासि(मि)व्व ववहरंति काई सत्तुब्ब रोरो इव काई पय(ण)एसु पणमंति काई उवणएसु उवणमंति काई कोउयनम्मंतिकाउं सुकडवखनिरिविखएहिं सविलासमहुरेहि उवहसिएहिं उवगूहिएहिं उवसद्देहिं गुज्झ / (रु)गदरिसणेहिं भूमिलिहणविलिहणेहिं च पारुहणनट्टणेहि अ बालथउवगृहणेहिं व अंगुलीफोडणथणपीलण-कडितडजायणाहिं तज्जणाहिं च, अवि याई तायो पासो विव सिउंजे पंकुव्व खुप्पिलं जे मच्छुब्ब मारेउं जे अगणिव्व डहिउं जे असिव्व छिजिउं जे ॥सू० १८॥असिमसिसारिच्छीणं कतारकवाडचारयसमाणं / घोरनिउरंबकंदरचलंत-बीभच्छभावाणं // 22 // दोससयगागरीणं अजससय-विसप्पमाण हिययाणं / कइयवपन्नत्तीणं ताणं अन्नायसीलाणं // 23 // अन्नं रयंति अन्नं रमंति अन्नस्स दिति उल्लावं / अन्नो कडयंतरियो अन्नो पडयंतरे ठवियो॥२४॥ गंगाए बालुयाए सायरे जलं हिमवयो य परिमाणं / उग्गस्स तवस्स गई गम्भुप्पत्तिं च विल(वाणि)याए // 25 // सीहे कुडुबयारस्स पुट्टलं कुक्कुहाइयं श्रस्से / जाणते बुद्धिमंता महिलाहिययं न याणंति // 26 // एरिसगुणजुत्ताणं ताणं कइयवसंठियमणाणं / न हु मे वीससियव्वं महिलाणं जीवलोगम्मि // 27 // निद्धन्नयं च खलयं पुप्फेहिं विवजियं च धारामं / निद् द्धियं च घेणु लोएवि अतिल्लियं पिंडं // 28 // जेणंतरेण निमिसंति लोयणा तक्खणं च विगसंति / तेणंतरेण हिययं वियार(चित्त)सहसाउलं होइ // 26 // जड्डाणं वुड्डाणं निविण्णाणं च निविसेसाणं / संसार.

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