Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 44
________________ प्रकीर्णकानि / 4 बीतंदुलवैचारिकप्रकीर्णर। [31 कोई पुण पावकारी बारस संवच्छराई उकोसं / अच्छइ उ गम्भवासे असुः इप्पभवे असुइयंमि // 24 // जायमामस्स जं दुक्खं, मरमाणस्स वा पुणो / तेण दुक्खेण संमूढो, जाइं सरइ नऽप्पणो // 25 // विस्सरसरं रसंतो यह सो जोणीमुहाउ निष्फिडइ / माऊए अप्पणोवि य वेयणमउलं जणेमाणे // 26 // गब्भघरयम्मि जीवो कुभीपागम्मि नरयसंकासे / वुच्छो श्रमिझमज्झे असुइप्पभवे असुइयंमि // 27 // पित्तस्स य सिंभस्स य सुकस्स य सोणियस्सवित्र मज्झे। मुत्तस्म पुरीसस्स य जायइ जह वच्चकि मिउव्व // 28 // तं दाणिं सोयकरणं केरिसयं होइ तरस जीवस्स 1 / सुकरुहिरागरायो जस्सुप्पत्ती सरीरस्स // 21 // एषारिसे सरीरे कलमल. भरिए अमिज्मसंभूए / निययं विगणिज्जतं सोयमयं केरिसं तस्स ? // 30 // अाउसो ! एवं जायस्स जंतुस्स कमेण दस दसायो एवमाहिज्जति, तंजहा-बाला 1 किड्डा 2 मंदा 3 बला य 4 पन्ना य 5 हायणि 6 पवंचा 7 / पन्भारा 8 मुम्मुही 1 सायणी य 10 दसमा य कालदसा // 31 // जायमित्तरस जंतुस्स, जा सा पढमिश्रा दसा / न तत्थ भुजिउं भोए, जइ से अस्थि घरे धुवा // 32 // बीयाए किड्डया नाम, जं नरो दसमस्सियो / किड्डारमणभावेण, दुलहं गमइ नरभवं // 33 // तईयाए मंदया नाम, जं नरो दसमस्सियो / मंदस्स मोहभावेणं, इत्थीभोगेहिं मुच्छियो // 34 // (जायमित्तस्स जंतुस्स, जासा पढमिया दसा / न तत्थ सुहं दुवखं वा, बहुँ जाणंति बालया // 32 // बिइयं च दसं पत्तो, नाणाकीलाहिं कीई / न य से काम भोगेसु, तिव्वा उप्पजई रई // 33 // तइयं च दसं पत्तो, पंच कामगुणो नरो। समत्थो भुजिउं. भोए, जइ से अस्थि घरे धुवा // 34) चउत्थी उ बलानाम, जं नरो दसमस्सियो / समत्थो बलं दरिसेउं, जइ सो भवे निरवद्दवो // 35 // पंचमी तु दसं पत्तो, थाणुपुव्वीइ जो नरो / समत्थोऽत्थं विचिंतेचं, कुडुवं चाभिग

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