Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 52
________________ प्रकीर्णकानि 5 श्रीतंदुलवैचारिकप्रकीर्णकम् ] [41 इ8 पियं कंतं मणुगणं मणाम मणाभिरामं थेज वेसासियं संमयं बहुमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं रयणकरंडयोविव सुसंगोवियं चेलापेडाएविव सुसंपरिवुडं तिलपेडाविव सुसंगोवियं मा णं उगह मा णं सीयं मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं चोरा मा णं वाला मा णं दंसा मा णं मसगा मा णं वाइयपित्तिय सिंभिय-संनिवाइया विविहा रोगायंका फुसंतुत्ति कटु, एवंपि याई अधुवं अनिययं असासयं चोवचइयं विप्पणासधम्मं पच्छा व पुरा व अवस्स विप्पचइयव्वं, एयस्सवि याई पाउसो ! अणुपुब्वेणं अट्ठारस य पिटुकरंडगसंधीयो बारस पांसुलिकरंडया छप्पंसुलिए कडाहे बिहत्थिया कुच्छी चउरंगुलिया गीवा चउपलिया जिब्भा दुपलियाणि अच्छीणि चउक्वालं सिरं बत्तीसं दंता सत्तंगुलिया जीहा अद्भुटुपलियं हिययं पणवीस पलाई कालिज्जं 1 / दो अंता पंचवामा पराणत्ता, तंजहा-थूलते यतणुते य, तत्थ णं जे से थूलते तेणं उच्चारे परिणमइ, तत्थ णं जे से तणुयंते तेणं पासवणे परिणमइ, दो पासा पराणत्ता, तंजहा-वामे पासे दाहिणे पासे य, तत्थ णं जे से वामे पासे से सुहपरिणामे, तत्थ णं जे से दाहिणे पासे से दुहपरिणामे 2 / अाउसो! इममि सरीरए सढि संधिसयं सत्तुत्तरं मम्मसयं तिनि अहिदामसयाई नव राहारुयसयाई सत्त सिरासयाई पंच पेसीसयाई नव धमणीउ नवनउइं च रोमकूवसयसहस्साई विणा केसमंसुणा, सह केसमंसुणा अछुट्टाउ रोमकूवकोडीयो 3 / अाउसो! इममि सरीरए सहि सिरासयं नाभिप्पभवाणं उड्ढगामिणीणं सिरमुवागयाणं जाउ रसहरणीयोत्ति वुच्चंति, जाणंसि निरुवघातेणं चक्खुसोयघाणजीहाबलं च भवइ, जाणंसि उवघाएणं चक्खुसोयघाणजीहावलं उवहम्मइ, अाउसो / इमंमि सरीरए सट्ठ सिरासयं नाभिप्पभवाणं होगामिणीणं पायतलमुवगयाणं जाणंसि निवघाएणं जंघावलं हवइ, जाणं चेव उवघाएणं सीसवेयणा श्रद्धसीसवेयणा मत्थयसूले अच्छीणि अंधिज्जति 4 / पाउसो ! इमंमि सरीरए सर्टि सिरासयं नाभिप्प

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