Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 24] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: अष्टमों विभागः पित्रो॥ 11 // होउ व जडी सिहंडी मुडी वा वकली व नग्गो वा / लोए असच्चवाई भन्नई पासंडचंडालो // 10 // अलिअं सइंपि भणिग्रं विहणइ बहुअाइं सच्चवयणाई / पडियो नरयंमि वसू इक्केण असनवयणेणं // 10 // मा कुणसु धीर बुद्धिं ! अप्पं व बहुँ व परधणं घित्तु। दंतंतरसोहणयं किलिंचमित्तंपि अधिदिन्नं // 102 // जो पुण अथं अवहरइ तस्स सो जीवि$पि श्रवहरइ। जं सो अत्थकएणं उन्झइ जीयं न उण अत्थं // 103 // तो जीवदयापरमं धम्म गहिऊण गिराह माऽदिन्नं / जिणगणहरपडिसिद्धं लोगविरुद्धं अहम्मं च // 104 // चोरो परलोगंमिऽवि नारयतिरिएसु लहंइ दुक्खाई / मणुअत्तणेवि दीणो दारिदोवहुयो होइ // 105 // चोरिकनिवित्तीए सावयपुत्तो जहा सुहं लहई। किदि मोरपिच्छचित्तिय गुट्ठीचोराण चलणेसु // 106 // रक्खाहि बंभचेरं बंभगुत्तीहिं नवहिं परिसुद्धं / निच्चं जिणाहि कामं दोसपकामं विप्राणित्ता // 107 // जावइथा किर दोसा इहपरलोए दुहावहा हुँति / श्रावहइ ते उ सव्वे मेहुणसना मणूसस्स // 108 // रइअरइतरलजीहा-जुएण संकप्पउभडफणेणं / विसयबिलवासिणा मयमुहेण विब्बोअरोसेणं // 101 // कामभुअंगेण दट्ठा लज्जानिम्मोअदप्पदाढेणं / नासंति नरा अवसा दुस्सहदुक्खा वहविसेणं // 110 // लल्लकनिरयवित्रणाश्रो घोरसंसारसायसवणं / संगच्छइ न य पिच्छ। तुच्छत्तं कामिंगसुहस्त // 111 // वम्महसरसयविद्धो गिद्धो वाणिउब रायपत्तीए। पाउक्खालयगेहे दुग्गंधेऽयोगसो वसियो // 112 ! कामासत्तो न मुणइ गम्मागम्मपि वेसित्राणुव्व / सिट्टी कुबेरदत्तो निश्रयसु. श्रासुरयरइरत्तो // 113 // पडिपिल्लिय कामकलिं कामग्यस्थासु मुसु अणुबन्धं / महिलासु दोसविसवल्लरीसु पयई नियच्छंतो // 114 // महिला कुलं सुवंसं पियं सुग्रं मायरं च पियरं च। विसयंधा अगणंती दुक्खसमुद्दम्मि पाडेइ // 115 // नीअंगमाहिं सुपश्रोहराहिं उप्पिच्छमंथर
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