Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 22] / श्रीमदागमसुधासिन्धुः :: अष्टमो विभागः नत्थि संसारे॥ 65 ॥दसणभट्ठो भट्ठो दंसणभट्टस्स नत्थि निवाणं / सिमंति चरणरहिया दंसणरहिश्रा न सिझति // 66 // सुद्धे सम्मत्ते अविरोऽवि अज्जेइ तिस्थयरनामं / जह भागमेसिभद्दा हरिकुलपहुसेणियाईया // 67 // कल्लाणपरंपरयं लहंति जीवा विसुद्धसम्मत्ता / सम्मइसणरयणं नऽग्घइ ससुरासुरे लोए // 68 // तेलुक्कस्स पहुत्तं लभ्रूणवि परिवडंति कालेणं / सम्मत्तं पुण लद्धु अक्खयसुक्खं लहइ मुक्खं // 61 // अरिहंतसिद्धचेइयपवयणायरियसव्वसाहसु। तिव्वं करेसु भत्तिं तिगरणसुद्धेण भावेणं // 70 // एगावि सा समत्था जिणभत्ती दुग्गइं निवारेउं / दुलहाई लहावेउं पासिद्धि परंपरसुहाई // 71 // विजावि भत्तिमंत्तस्स सिद्धिमुवयाइ होइ फलया य / किं पुण निव्वुइविजा सिज्झिहिइ अभत्तिमंतस्स ? // 72 // तेसि धाराहणनायगाण न करिज जो नरोभत्तिं / धणियपि उज्जमंतो सालिं सो ऊसरे ववइ // 73 // बीएण विणा सस्सं इच्छइ सो वासमभएण विणा / श्राराहणमिच्छतो धाराहयभत्तिमकरंतो // 74 // उत्तमकुलसंपत्ति सुहनिप्पत्तिं व कुणइ जिणभत्ती। मणियारसिटिजीवस्स दददुररसेव रायगिहे || 75 // श्राराहणापुरस्सरमणन्नहियो विसुद्धलेसायो। संसारकखयकरणं तं मा मुंची नमुक्कारं // 76 // अरिहंतनमुक्कारो-इक्कोऽवि हविज जो मरणकाले / सो जिणवरेहिं दिट्ठो संसारुन्छेत्रणसमत्थो // 77 // मिठो किलिट्टकम्मो नमो जिणाणंतिसुकयपणिहाणो / कमलदलक्खो जक्खो जायो चोरुति सूलिहयो॥ 78 // भावनमुक्कारविवजिबाई जीवेण अकयकरणाई / गहियाणि अ मुक्काणि श्र अणंतसो दवलिंगाई // 7 // श्राराहणापडागागहणे हत्थो भवे नमोकारो। तह सुगइमग्गगमणे रहुब्ब जीवस्स अप्पडिहो // 80 // अन्नाणिवि श्र गोवो श्राराहित्ता मश्रो नमुक्कारं / चंपाए सिट्ठिसुत्रो सुदंसणो विस्सुश्रो जाओ // 81 // विजा जहा पिसायं सुट्ट वउत्ता करेइ पुरिसवसं। नाणं हियपिसायं सुठ्ठवउत्तं
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