Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ प्रकीर्णकानि४ श्रीमतपरिज्ञाप्रकीर्णकम् ] [ 21 पायरित्र उवज्झाए सीसे साहम्मिए कुलगणे य / जे मे केइ कसाया सव्वे तिविहेण खामेमि // 48 // सव्वे अवराहपए खामे मि अहं खमेउ मे भयवं ! / अहमवि खमामि सुद्धो गुणसंघायस्स संघस्स // 41 // इत्र वंदणखामणगरिहणेहिं भवसयसमजिअं कम्मं / उवणेइ खणेण खयं मिगावई रायपत्तिब्व // 50 // अह तस्स महब्वयसुट्ठिअस्स जिणवयणभाविअमइस्स / पञ्चक्खायाहारस्स तिव्वसंवेगसुहयस्स // 51 // बाराहणलाभायो कयत्थमप्पाणयं मुणंतस्स / कलुसकलतरणलट्ठि अणुसढि देइ गणिवसहो-॥ 52 // कुग्गहपरूढमूलं मूला उच्छिद वच्छ ! मिच्छत्तं / भावेसु परमतत्तं सम्मत्तं सुत्तनीईए // 53 // भत्तिं च कुणसु तिव्वं गुणाणुराएण वीरायाणं / तह पंचनमुक्कारे पवयणसारे रई कुणसु ॥५४॥सुविहिअहिअनिज्झाए सज्झाएउज्जुश्रो सया होसु / निच्चं पंचमहब्बय-रक्खं कुण श्रायपचक्खं // 55 // उज्झसु निश्राणसल्लं मोहमहल्लं सुकम्मनिस्सल्लं / दमसु अ मुणिंदसंदोहेनिदिए इंदिनमइंदे // 56 // निबाणसुहावाए विइन्ननिरयाइदारुणावाए। हणसु कसायपिसाए विसयतिसाए सइसहाए // 57 // काले अपहुप्पंते सामन्ने सावसेसिए इसिंह / मोहमहारिउदारण-असिलहिँ सुणसु अणुसद्धिं // 58 // संसारमूलबीधे मिच्छत्तं सव्वहा विवज्जेह। सम्मत्ते ददचित्तो होसु नमुक्कारकुसलो अ॥५१॥ मिगतिरिहयाहिं तोयं मन्नंति नरा जहा सतराहाए / सुक्खाई कुहम्मायो तहेव मिच्छत्तमूहमणो // 60 // नवि तं करेइ अग्गी नेत्र विसं नेत्र किराहसप्पो अ। जं कुणइ महादोसं तिव्वं जीवस्स मिच्छत्तं // 61 // पावेइ इहेव वसणं तुरुमिणिदत्तुब दारुणं पुरिसो। मिच्छत्तमोहिश्रमणो साहुपश्रोसाउ पावायो // 62 // मा कासि तं पमायं सम्मत्ते सव्वदुक्खनासणए। जं सम्मत्तपइट्टाई नाणतवविरिश्रचरणाई // 63 // भावाणुरायपेमाणु-रायसुगु. णाणुरायरत्तो श्र। धम्माणुरायरत्तो थ होसु जिणसासणे निच्च / / 64 // दसणभट्ठो भट्ठो न हु भट्ठो होइ चरणपन्भट्ठो। दंसणमणुपत्तस्स हु परिअडणं
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