Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ प्रकीर्णकानि :: 4 श्रीभक्तपरिशाप्रकीर्णकम् / विसयसुहविगयरागो धम्मुज्जमजायसंवेगो // 13 // निच्छिश्रमरणावत्थो वाहिग्घत्थो जई गिहत्थो वा। भविश्रो भत्तपरिन्नाइ नायसंसारनिग्गुनो // 14 // पच्छायावपरखो पियधम्मो दोसदूसणसय(ह)गहो। अरहइ पासत्थाईवि दोसदोसिल्लकलियोऽवि॥१५॥वाहिजरमरणमयरो निरंतरुप्पत्तिनीर-निकुरंबो। परिणामदारुणदुहो अहो दुरंतो भवसमुद्दो॥१६॥इय कलिउण सहरिसं गुरुपामूलेऽभिगम्म विणएणं ।भालयलमिलिअकरकमलसेहरो वंदिउँ भणइ // 17 // आरुहिश्रमहं सुपुरिस ! भत्तपरिनापसत्थबोहित्यं / निजामएण गुरुणा इच्छामि भवन्नवं तरिउं // 18 // कारनामयनीसंद-सुदरो सोऽवि से गुरू भणइ / थालोयणवयखामण-पुरस्सरं तं पवज्जेसु॥ 11 // इच्छामुत्ति भणित्ता भत्तीब. हुमाणसुद्धसंकप्पो / गुरुणो विगयावाए पाए अभिवंदिउं विहिणा // 20 // सल्ल उद्धरिउ मणो संवेगुब्वेअतिब्बसद्धायो / जं कुणाइ सुद्धिहेउं सो तेणाराहयो होइ // 21 // यह सो पालोयणदोस-वजिअं उज्जुग्रं जहाऽऽयरियं / बालुब्ब बालकालाउ देइ अालोणं सम्मं // 22 // ठविए पायच्छित्ते गणिणा गणिसंपयासमग्गेणं / सम्ममणुमनित्र तवं अपावभावो पुणो भणइ // 23 // दारुणदुहजलयरनिअर-भीमभवजलहि-तारणसमत्थो। निप्पचवायपोए महब्बए अम्ह उक्खिवसु // 24 // जइवि स खंडिअचंडो अखंडमहव्वयो जई जइवि / पव्वजवउट्ठावण-मुट्ठावणमरिहइ तहावि // 25 // पहुणो सुकयाणत्तिं भिचा(भव्वा)पञ्चप्षिणंति जह विहिणा। जावजीवपइराणा-णत्तिं गुरुणो तहा सोऽवि // 26 // जो साइबारचरणो पाउट्टिअदंडखंडिअवयो वा / तह तस्सवि सम्ममुवट्ठिअस्स उट्ठावणा भणिया // 27 // तत्तो तस्स महब्बय-पव्ययभारोनमंतसीसस्स / सीसस्स समारोवइ सुगुरुवि महत्वए विहिणा // 28 // अह हुज देसविरयो सम्मत्तरश्रो रो अ जिणधम्मे(वयणे) / तस्सवि अणुव्वयाई आरोविजंति सुद्धाई // 21 // थनियाणोदारमणो हरिसवसविसट्ट-कंचुयकरालो / एइ गुरुं संघं साहम्मि
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