Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 08
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 38
________________ प्रकीर्णकानि: 4 भक्तपरिज्ञाप्रकीर्णकम् ] [ 27 (जिणवीरविणिदिट्टो दिढतो बंधुजुयलेण) // 147 // छलिया अवयक्खंता निरावयक्खा गया अविग्घेणं / तम्हा पवयणसारे निरावयक्खेण होअव्वं // 148 // विसए अवियक्खंता पडंति संसारसायरे घोरे / विसएसु निराविक्खा तरंति संसारकंतारं // 14 // ता धीर ! धीवलेणं दुहते दमसु इंदिश्रमईदे / तेणुक्खयपडिवक्खो हराहि धाराहणपडागं // 150 // कोहाईण विवागं नाऊण य तेसि निग्गहेण गुणं / निग्गिराह तेण सुपुरिस ! कसायकलिणो पयत्तेणं // 151 // जं अइतिक्खं दुक्खं जं च सुहं उत्तम तिलोईए। तं जाण कसायाणं वुड्डिक्खयहेउग्रं सव्वं // 152 // कोहेण नंदमाई निहया माणेण फरसुरामाई / मायाइ पंडरजा लोहेणं लोहनंदाई // 153 // इत्र उवएसामयपाणएण पल्हाइअम्मि चित्तंमि। जाग्रो सुनिव्वुयो सो पाऊण व पाणिग्रं तिसिश्रो // 154 // इच्छामो अणुसद्धिं भंते ! भव पंकतरणदढलढेि / जं जह उत्तं तं तह करेमि विणोणत्रो भणइ // 155 / / जइ कहवि असुहकम्मोदएण देहम्मि संभवे वियणा / अहवा तराहाईश्रा परीसहा से उदीरिजा // 156 // निद्धं महुरं पल्हाणिजहिअयंगमं श्रणलियं च / तो सेहावेयचो सो खवयो पनवंतेणं // 157 // संभरसु सुश्रण ! जं तं मझमि चउन्विहस्स संघस्स / बूढा महापइना ग्रहयं श्राराहइस्लामि // 158 // अरिहंतसिद्धकेवलि-पञ्चवखं सबसंघसविखस्त / पञ्चखाणरस कयस्त भंजणं नाम को कुणइ ? || 151 // भालुकीए करुणं खज्जंतो घोरवियणत्तोऽवि / बाराहणं पवनो झाणेण अवंतिसुकुमालो // 160 // मुग्गिल्लगिरिंमि सुकोसलोऽवि सिद्धत्थदइयो भयवं / वग्धीए खज्जतो पडिवन्नो उत्तमं अट्ठ॥ 161 // गुढे पायोवगो सुबंधुणा गोमए पलिविम्मि / डझतो चाणको पडिवन्नो उत्तम टुं॥ 162 // अवलंबिऊण सत्तं तुमंपि ता धीर ! धीरयं कुणसु। भावेसु श्र नेगुन्नं संसारमहासमुदस्त // 163 // जम्मजरामरणजलो अगाइमं वसणसावयाइन्नो।

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