Book Title: Agam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ पंचकम्पो - (३४०) ॥३४०॥ ॥३४॥ ॥३४२॥ !!३४३॥ ॥३४४॥ ॥३४५॥ ||३४६॥ ||३४७|| ॥३४८11 (३४०) सागारियस्स गंधं जिंपति सोगंधिओभव स खलु कालंतरेण सोऽवी अलभंतो परिणमे अपुमं (३४१) विग्रह अनुप्पवेसिय अच्छति सागारियसि आसत्तो नय से भावोक्समो अलभंतो सोवि अपुम भवे (३४२) गालिय दोमाऊगाजस्स हुसो वद्धिओ मुणेयव्बो चिप्पिय बालस्सेव तुचिप्पित्तु विरहितोजस्स (३४३) मंतेणुवहतवेदो अहयायी ओसहीहिं जस्स भवे इसिसत्तदेवसत्ता इसिणा देवेण वा सत्ता (३४४) वद्धियमादि उवरिमा छछ नपुंसा हवंतिमयणिजा जदि पडिसेवि न दिखे अह नविपडिसेवि तो दिक्खे (३४५) आदिल्लेसुदसस्सुवि पव्यायिंतो हुपावए मूलं जो पुण पव्वावेहा वदतेवंतस्स चउगुरुगा (३४६) जे पुण छतुवरिमगा पव्वाविंतस्स चउगुरूतेसु यदमाणेऽवियगुरुगा किं वदतेसो इमं सुणसु (३४७) थीपुरिसा जह उदयं धरिति झाणोववासणियमेहिं एवमपुमंपि उदयं धरेज जदिको तहिं दोसो (३४८) अहवा ततिए दोसो जायति इयरेसु किं न सो भवति एवं खु नत्यि दिक्खासवेदगाणं न वा तित्यं (३४२) भण्णति थीपुरिसा खलु पत्तेयं दोसरहियठाणेसु निवसंती इयरो पुण कहिं छुमति दोसुवी दोसा (३५०) संवासफासदिट्टीदोसा हू तस्स उभयसंवासे अप्पत्यंबगदिद्रुत जह राय मतो अवारंतो (३५१) एत्थंबगदिढतो आहवा जह वच्छो मातरं घटुं अभिलसती मायाविय यच्छंदखूण पाहुयति (३५२) अंबंधा खजंतं दबु अहिलासो होति अण्णस्स सागारियादि घटुंएष नपुंसे मवेदोसा (३५३) तम्हा हुन दिक्खिन्ना एवं नाऊणमेत दोसगणं बितियपदे दिक्खिना इमेहिं अह कारणेहिंतु (३५४) असिवे ओमोदरिए रायहुवे भए व आगाढे गेलन उत्तिपढे नाणे तह दंसण चरित्तो (३५५) रायडुट्ठभयेसु ताणऽनिवस्स चेव गमणट्ठा वेजो वसयं तस्स व तप्पिस्सति वा गिलाणस्स (३५६) पडिचरगस्सऽसतीए एगागी उत्तिमझुपडिवणे अहवावी असहाए वेयावहता दिक्खे गुरुणो व अप्पणो या नाणादी गिण्हमाणे तप्पिहिति अचरणदेसा णिते तप्पेओमासिदेहि वा ||३४९|| 11३५०1 ||३५१॥ ॥३५२॥ ॥३५३॥ ||३५||* ।।३५५॥ ॥३५६॥ ॥३५७॥ For Private And Personal Use Only

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