Book Title: Agam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 106
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गाड़-१६८४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६८४) दव्वं तु गेण्हियव्वं सुद्धं गविसिय गवेसणा दुविहा अविषीय विहीए या अविहीय इमं मुणेयव्यं (१३८५) दव्वाणि जाणि काणिवि गहणं लोए उदेति साहूणं तेसिं तु संभवं प्रग्गमाणे न उ साहते अत्यं (१६८६) अविहीय दोस पिंडुवहिसेज्जसज्झायनिक्कमपवेसे नवक गहदुयच उक्के एते सव्ये न पायेति (१९८७) सालीतुंबीमादी आहारे फलिहमादि उयहिम्मि रुक्खा पुण सेना एमाधिगमो हु साहूणं (१६८८) एयाई पुच्छिऊणं कत्थ पइण्णाणि तर्हि तर्हि गच्छे अविहिगवेसण एसा जह मणिया पिंडजुत्तीए ( १६८९) आहारो वहिसेजण नाणदव्वेहिं होइ निष्पत्ती वेसणमिरिएपिप्पलिअल्लगधयतेलगुलमादी (१६९०) हिमवंते पिप्पलीओ मलए मरिचाण होइ निष्फत्ती हिंगुस्स रमढविस जीरगमादी य जो जत्थ (१६९१) मा अम्हं अड्डाए गावो कीता हढा व दूढा वा फलमादी मा रुक्खो व रोवितो अम्ह अट्ठाए ( १९९२) एमादि विमगंतो पभवं नाणादियाण परिहाणी तह बत्यपायसेजाण मरेति सो अंतरा चेव (१६९३) एवं सो हिंडतो मत्तं पाण च ठाणपुवहिं च कह उग्गमेज कह वा सज्झायं कुणउ हिडंतो (१६९४) जो निक्खमणपवेसे कालो भणिओ उ वासउडुबद्धो दुचउक्कं उडुबद्ध विहारो हेमंतगिम्हासु (१६९५) नवमो वासावासे एसो कप्पो जिणेहिं पन्नत्ती एयरस संखमाणं योच्छामि अहं समासेणं (१६९६) दोत्रि सया चत्ताला उडुबद्धे एत्तिओ विहारो उ वसासू पत्रासा पणगं पणगं हसति एवं (१९९७) पुरपच्छिममज्झाणं सव्वेसिं एस कालवोच्छेओ निचं हिंडतेणं विराहितो होति सो नियमा (१६९८ ) तम्हा खलु उप्पत्ती न एसियव्वा उ तेसि दव्वाणं जस्सऽट्ठा निष्फनं तं गंतुं एसए मइमं (१९९९) अइबहुय दुल्लभं वा नाउं दव्वकुलदेस भावे य पुच्छति सुद्धमसुद्धं ताहे गहणं अगहणं वा (१७००) अहवा पुट्ठो भणेजा समणादिकयं व अहव निक्खित्तं पक्वित्तं यावि भवे तत्य उ दारा इमे होंति (१७०१ ) समणे समणी सावय साविगसंबंधि इड्ढि मामाए राया तेणे पक्खेवे या निक्खेवयं कुखा For Private And Personal Use Only ।।१६८४ ।। ||१६८५|| १६८६॥ ★ ।।१६८७६ ।।१६८८ ।। ।।१६८९ ॥ ।।१६९०।। ।।१६९१।। ॥१६९२॥ ।।१६९३॥ ॥१६९४॥ ||९६९५|| ।।१६९६ ।। ।।१६९७॥ ।।१६९८ ।। ।।१६९९।। 11900011 11900911 १०३

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