Book Title: Agam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 152
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४९ ॥२५०९॥* ||२५१०॥ ॥२५११॥ ||२५१RID IR५१३॥ २५१४|| २५१५॥ ॥२५१६॥ ममा-२५०१ (२५०१) पूयारसपडिबद्धो सुद्ध असुद्धं करेइ संभोग अहवावि अजाणतो संभोगविहीऍ गुणदोसे (२५१०) पूजाहेतुपमादी सेवती रसहेउगंच तस्सेवी नाणादिसुद्धकप्पं कुणइ असुद्धं तु सो एवं (२५११) बारस मूलपदाखलु संभोगविहीय वणिया सुत्ते जत्तो पायादाणंभणितं वाण उक्खेवो (२५१२) उवहिसुतमत्तपाणे अंजलीपरगहे इय यायणाय निकाए य अब्मुट्ठा नेत्तियावरे (२५१३) किइकम्मस्सय करणे वेयावश्चकरणेइय समोसरण सन्निसेजा कहाए य पबंधणे (२५१४) एते पारस मेदा संमोगविहीय तू समक्खाया पावादाणं तेसु य इमेहिं ठाणेहिं नायव्वं (२५१५) रागद्दोसाणुगओ जो संभोगं तु पालए पत्तं सो दुट्ठो नायव्वो तस्सुक्खेदो विसंभोगो (२५१६) अहव इमेहिं तु कारणेहिं नियमा भवे विसंभोगो संभोगविहिं जो तू विवरीयं आयरिजाहि (२५९७) उदरिम मज्झिम हेहिम संभोगट्ठाणगं तिहाविभए पडिसेहे पडिसेहो समगुण्णे होइसमणुप्पो (१५१८) उवरिमएत्ति अहागड मज्झिमगा होति अप्पपरिकमा सपरिक्कम्मा हिहिम संभोगविही तिहा एसो (२५११) अहाकडा मिलति अहाकडेसुभत्तं च पाणं तह धोवणं या अहाकडा गच्छति हिटिमेसुंन हिटिया छुल्म अहाकडेसुं (२५२०) मज्झितिता हिडिमते छुब्भइ न तु हिडिमा उवरिमेसुं एसोतिविहो उ भवे संभोगविही समासेणं (२५२१) पडिसेहे पडिसेहो सपरिक्कमंतु होइ पडिबद्धं तस्स पुणोपडिसेहो उवरिल्ले मैलणा जाउ (२५२२) पडिसेहो हेह्रवार उवरिलो हिडिमै अनुण्णाओ अह पडिसेहि अणुण्णा होति इमा तू मुणेयव्या (२५२३) जो पडिसिद्ध एयं आयरती तस्स होइ पडिसेहो पडिसेहो विवेगुत्ती अवितहकरणे अणुण्णा उ (२५२४) केरिसएणंतु समं संमोगो तेसि होइ कायव्वो __ अहवाविन कायब्बो मण्णइ इणमोनिसामेहि (२५२५) नवि एस मंदधम्मे न गिहत्येसुन चेव अजातु बावत्तरीविभत्तोऽयितरेपडिसेहणं जाणे (२५२६) दिइ घेप्पइय तहा केसिवी न दिए न धेप्पइ उ नवि दितिघेपति तू नवि दिञ्जति नविउधेप्पइ तू ॥२५१७॥★ ॥२५१८॥ ॥२५१९॥ ॥२५२०॥ ॥२५२१॥ ॥२५२२॥ ॥२५२३॥ ||२५२४ ||२५२५||★ ||२५२६॥ For Private And Personal Use Only

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