Book Title: Agam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 153
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५० ॥२५३४||* पंचको - (२५२०) (२५२०) संविग्गसंजयाणं दिइधेप्पइय पदममंगो उ संजतिवग्गे दिझति नविघेप्पर कारणे बितिओ ॥२५२७|| (२५२८) गिहिअन्नतित्थियाणं नवि दिइ घेपई उ नवरंच नवि दिनति नविधेप्पइपासत्यादीण सव्वेसि ।। ल १६५ ॥२५२८॥ (२५२१) बावत्तरीविभत्तत्ति एस बारसविहो उसंमोगो छहिं गुणिओबावत्तरि संभोगाणं मुणेयव्या ॥२५२९॥ (२५३०) बावत्तरी उ एसा दुगतिगचउपंचछक्कसंगुणिया जावइय होति भेदा तेसु विसुद्धेसुसंभोगो २५३०॥ (२५३१) पडिसेहो असुद्धेसु कप्पे संभोग एस वक्खाओ अहुणा उ लिंगकप्पं वोच्छामि अहाणुपुदीए ॥२५३१॥ (२५३२) जो पुब्धि वक्खाओ जिणयेराणं तु दोण्हवी कप्पो रूढणहकक्खमादी सो चेव हपि नायव्वो ॥२५३२॥ (२५३३) इति एस लिंगकप्पो वोच्छं पडिसेवणाएँ कप्पंतु जारिसयंसेविजतिसुद्धमसुद्धं समासेणं ॥२५३३॥ (२५३४) गहणपरिमुंजणाए निव्वाघाए तहेव वाधाए ___ वायाए दुयगहणं निव्वाघाए यतियगहणं (२५३५) पडिसेवणा उ दुविहागहणे परिमुंजणे य नायव्या एक्केककाविय दुविहा निव्याघाते य वाघाते ॥२५३५॥ (२५३६) वाघातम्मी सुद्धं गेह असुद्धं च एतदयगहणं परिमुंजंतीविएवं निव्याघातम्मिवोच्छामि ॥२५३६।। (२५३७) उग्गममादीसुद्धं गेण्हति परिमुंजतीय तियमेयं अह पुण को बाघातोपरूवणा तस्सिमाहोइ ॥२५३७॥ (२५५८) असिवे ओमोदरिए रायगुढे भएवआगाढे छक्कायद्गमुवादाय वाघाते निव्वधाते य २५३८॥ (२५५१) सुद्धमसुद्धं च जहिं अहया सचित्तमीसगं वावि एतेसिंदोण्हंतू वाधाते गहण मोगेय (२५४०) निव्याघाए छहवि अचित्ताणं तु गहण कायाणं गहियस्सय परिभोगो तस्वयहोइ कायचो (२५) परिभोगे वाघाते गहिए पच्छा त होजतं नातं मह आहाकम्मंतीताहे य तयं न परिमुंजे (२५४२) वाघाते सेवंतो अकिञ्चमेयं तु चिंतए साहू होइ तहा निझरतोजो पुण इणमो समायरति ॥२५४२॥ (२५४३) पूजारसपडिबछो ओसण्णाणं च आणुयत्तीय चरणकरणं निगूहति तंजाणऽणुयत्तियं समणं। ॥२५४३||* (२५४) पूजारसहेउवाबेईजह कियमेव एयंतु मा मेन देहिति पुणो जह एसोऽकिच्चकारित्ति ॥२५ ॥ २५३९॥ ||२५४०॥ ||२५४१11 For Private And Personal Use Only

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