Book Title: Agam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
m
पंचकप्पो - (२
)
॥२४१२॥
॥२४२०॥
२४२१॥
॥२४२२॥
२४२३॥
॥२४२४॥
१२४२५॥
॥२४२६॥
॥२४२७||
(२४११) दुगमादीगच्छाणं पडिलेहगणिग्गयाण समगंतु
पत्ता खेतं एसो पढमगमंगो मुणेयव्यो (२४२०) समगंनिग्गम एकके पच्छा पत्ताय बितियओ भंगो
पन्छा निग्गय पुल्वं पविट्ठ पच्छा यदुहतोवि (२०२१) पढमगभंगे जो खलु पुब्तुि अनुन्नतिते खेती
समगं पुणऽनुनविए सामन्नं होइ दोहंपि (२४२२) बितियगभंगेदपेण पुब्बि पत्ता उजइनऽणुणयंति
इयोसिं असढाण य अनुनदेंताणं खेत्तंतु (२४२५) पुरनिग्गता कहं पुण पच्छा पता उतेहविजाहि
गेलण्णखमगपारणवाघातो अंतर हविजा (२४२७) गेलण्णवाउलाणं तु खेत्तमण्णस्स नोदए
निसिद्धोखमओ घेव तेण तस्सनलब्मती (२४२५) अंतरवाघाएग पच्छा पताण पुविजेपत्ता
असदेहिं अनुनवितं पुचि पत्ताण तं खितं (२४२६) अह समगमणुत्रविए काउपमादपि तो उसाहारं
एवं तु बितियभंगो अहुणा ततियस्मि योच्छामि (२४२७) पच्छावि पत्थियाण सभावसिग्धगतिणो मवे खेत्तं
एमेव यआसत्र दूरखाणा व पत्ताणं (२४२८) मंगे चउत्यगम्मी पुवाणुण्णाएँ असदभावाणं
पढमगभंगसरिच्छा आपवणातत्य नायव्या (२४२१) पुबगहिओवि उपगहो होति गिलाणट्ठताए जहियव्वो
अह होआसंघरणं कालक्खेवो दुपक्षेवि (२४५०) पुबद्वितखेत्तीणंजइ आगच्छे गिलाणइत्तऽण्णे
जइ दोण्ह असंथरणं तो निगमो खेतियाणंतु (२४५१) अह दोण्हवि संथरणंदोण्हविइच्छति जा गिलाणोउ
एते य दुनि पक्खा अहवा समणा यसमणीओ (२४३२) गिलाण उवहीकिया भत्तोवहिलुद्धताऽविहिनहितं
पेलंती परखेत्तं साहम्मियतेणियातिविहा (३४१३) उवही नियडी माया गिलाणनिस्साएँ विजमाणेवि
छोत्तुएंति खित्ते भत्तोवहिलुखत्ताए उ (२४३५) लब्मंति सुंदराई गिलाणनियडीऍ एंति तो तत्थ
इतरेवि गिलाणोत्तीकाउंतओ नेति खेत्ताउ (२४३५) तेसुंतु निग्गएसुसझितादी उतिविह जंगेण्हे
तं तेसि होति तेण्ण पछित्तंचेव तिविहंतु (२४३५) जे पुण असंघरंताएंति तहिं तेसिमा भदे मेरा
आयरियसमअज्ञाणघेव धोछसमासेणं
॥२४२८॥
॥२४२९॥
॥२४३०॥
॥२४३१॥
॥२४३२॥
॥२४३३॥
॥२४३४॥
॥२४३५॥
॥२४३६॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164