Book Title: Agam 38B Panchkappabhasa Chheysutt 05B
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 146
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गाड़ा- २४०१ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४०१) कर्ज समाणइत्ता एई लद्धं च सव्वमप्पेति काय वग्गही ऊ नाणादीरहिं गुरुणाऽवि (२४०२) दव्वे सचितादीलामो सीसस्स जो तहिं होति सोविय जावज्जीवं सव्दो गुरुणो उ आभवति (२४०३) कुणती पाडिच्छोचि उ बेयावच्चं तु असणमादीहिं चप पमाणेणं कालेणं रोयती जाव (२४०४) गेव्ह या जाव सुतं ता कुणई सव्यमेव पाडिच्छी एतो दव्वे वोच्छं जं आभवती उ पाडिच्छे (२४०५) जं होइ नालबद्धं अभिसंधारेतगं तगं एति संदेसदिण्णगं बा नामे चिंधे य काले य (२४०६) वल्लीनंतर संतर अनंतरा छत्रणा इमे होति माता पिता माता भगिणी पुत्तो य धूया य (२४०७) मातुं माया य पिया भाता भगिणी य एव पिउणोऽवि भाभगिणीणऽवचा धूतापुत्ताणवि तहेद (२४०८) पारंपरवल्लि एसा जइ तं धारे पडिच्छगरसेव अह नो अपिधारेंती सुयगुरुणो तो उ आमच्या (२४०९) संगारो पुव्यकओ पच्छा पाडिच्छाओ उ सो जाओ तेज निवेदेयच्वं उयट्ठिता पुव्यसेहा मे (२४१०) एवइएहिं दिणेर्हि उब्म सगालं अवस्स एहामो संगा एव कतो चिंधाणि य तेसिं चिंधेइ (२४११) कालेज य चिंधेहि य अविसंवादीहिं तस्स गुरुनिहरा कालम्मि विसंबदिए पुच्छिजति किं न आओ सि (२४१२ ) संगारिददिवसेहिं जइ गेलण्णादि दीवयति तो उ तस्सेव अह तु भावो विपरिणओ पच्छ पुण जाओ (२४१३) ता होइ गुरुस्सेव तु एवं सुयसंपदाए भणितं तु सुहदुक्खुवसंपन्ने एतो लाभं पवक्खामि (२४१४) वसु मम सुहदुक्खे अहमवि उब्मे तु एवमुवसंपे पुरपच्छसंथुया ऊ सो लगती जे य बावीसं (२४१५) सुहदुक्ख संपएसा एत्तो खेत्तोवसंपदं वोच्छं खेत्तोग्गहो सको बाघाए वा अकोसं तु (२४१६) पत्ते उग्गह साहारणे य वासे तहेव अदुबद्धे सव्वदिसासु सकोसं निव्याघाएण पत्ते उ (२४१७) अडविजलतेणसावतवाधाते एगदुत्तिचउसुं वा होज्ज अकोसो उग्गहो अरुणा साहारणं योच्छं (२४१८) साहारण होज्जाही पडिलेहणपुव्यपच्छनिगमणे पुव्वं पच्छा पत्ते आयरिए यसम अचासु For Private And Personal Use Only ।। २४०१ ।। ॥२४०२ || १२४०३ ॥ ||२४०४|| ॥२४०५॥ ॥२४०६ ॥ ॥२४०७ ॥ ॥२४०८ ॥ ॥२४०९ || ॥२४१० ॥ ॥२४११|| ॥२४१२ ॥ ॥२४१३॥ ॥२४१४ ॥ |२४१५|| ॥२४१६|| ॥२४१७॥ ||२४१८|| ★ Y,

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